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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ५४ ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लटुडे देवरे मातनी पाई : लटुडे देवरे याने लघुकर्मी, माता याने सुमति । लघु कर्मी जीव ने सुमति माता को उत्पन्न किया । ससरो सुतो वहु होंडोले : ससुर याने जीव, सोता याने प्रमादवश, वहु याने सुमति । जीव प्रमादवश सो रहा है, उसे सुमति झुलाती है अर्थात् उसे जागृत करती है । हालो हालो सोभावी बोले ||४|| : हालो - हालो - चलो चलो, उद्यम करो यह स्वभाव कहता है । समय थोड़ा है, पुरुषार्थ करो । सरोवर उपर चढी बिलाइ : सरोवर याने शरीर, बिलाइ याने बुढ़ापा । शरीर पर बुढापा चढ गया है, व्याप्त हो गया है । बंभण घरे चंडाली जाई : ब्राह्मण याने ज्ञानी जीव, चंडालन याने कदाग्रह । ज्ञानी जीव के घर में कदाग्रह उत्पन्न हुआ अर्थात् ज्ञानवान जीव को कदाग्रह रूपी चंडालन पैदा हुई । कीड़ी सुती पोली नमावे : कीड़ी याने माया, सोती याने विस्तृत हुई, पोल याने काया, शरीर । माया के अधिक विस्तृत होने पर वह शरीर रूपी पोल (द्वार) में नहीं समाती है । For Private And Personal Use Only
SR No.008508
Book TitleAdhyatmik Hariyali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherNarpatsinh Lodha
Publication Year1955
Total Pages87
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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