Book Title: Adhyatmik Hariyali
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Narpatsinh Lodha

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Page 63
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ४५ ) सुमति सहेली साथै लहनें. दोठे मारग वही यें, क्रोध कषाय कुमति अज्ञानी, तेहथी वात न करिये रे बाई ॥ सा० ॥६॥ हिंदी शब्दार्थ : सुमति सहेली को साथ में लेकर मैं जिनेश्वर द्वारा दिखाये गये मार्ग पर चल रही हूँ । क्रोध, कषाय रूपी अज्ञानी कुमति से मैं बात भी नहीं करती ॥६॥ मिथ्यात्वी पीयरमा न वसीयें, रहेतां अलखामणा थइयें। मोह भाया मावतर वीरुआं, दोहि लो काल निगमिये रे बाई ॥ सा० ॥ ७ ॥ हिंदी शब्दार्थ : जिस पीहर में मिथ्यात्व हो उसमें नहीं रहना चाहिये, क्योंकि उसमें रहने से दोष लगता है। मोह माया रूपी पीहर ठीक है, इसमें कठिन समय निकल जाता है ॥७॥ अनुभव प्रीतम साथे रमतां, प्रेमे आनंद पद लहियें। विनयप्रभसूरि प्रसा, भावे शिवसुख लहिये रे बाई ॥सा०॥८॥ हिंदी शब्दार्थ : अनुभव रूपी प्रीतम के साथ रमण करते हुए, प्रेम से आनंद पद की प्राप्ति होती है । विनयप्रभ सूरि कहते हैं कि भावना के ही प्रताप से शिव सुख की प्राप्ति होती है ॥८॥ For Private And Personal Use Only

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