Book Title: Adhyatmik Hariyali
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Narpatsinh Lodha

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Page 64
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ४६ ) उपरोक्त पद्यों में पीहर, ससुराल, वस्ल और अलंकार के लिये निम्न रुपक समीकरण अनुक्रम से दृष्टि गोचर होते हैं: पीयेरियां.- पीहर = मिथ्यात्वी, मावतर = मोहमाया। सासरियां:- प्रीतम = अनुभव, ससर = जिनवर देव, सास= जिनआना, ससुराल = जिनधर्म। वस्त:- ओठणी (जीणी)= समकित. कांचलड़ी जीवदया, घाघ रियोशीयल स्मभाव।। अलंकार:- अकोर =विविध धर्म, कांकण = दान, चांडलो =शीयल । टीलु':- राग सिंदूर, नेपुर = निश्चय और व्यवहार, बेरखा = तप हार= भाव। इसके अतिरिक्त अन्य मत का ज्ञान = आर्या और सुमति = सहेली। ★★★★★ TALUSINE For Private And Personal Use Only

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