Book Title: Adhyatmik Hariyali
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Narpatsinh Lodha

View full book text
Previous | Next

Page 36
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( १८ ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जो पुरुष उसके सामने न उसके मुँह है, बहुत से लड़ लेती है, तब भी नहीं हारती । अपनी शक्ति बताये वह मूल से हार जाता है || २ || न पाँव, वह खाती भी नहीं । दाँत से वह पुत्र को जन्म देती है, वह कभी तृप्त नहीं होती || ३ || वह स्त्री घर-घर में है, किंतु साधु उसे नहीं रखते । सुधनहर्ष पंडित कहते हैं कि जिनेश्वर देव ने उसके लिये यही कहा है ||४|| हरियाली ५ सात नारी सिर उपरे, एक नर उपाडे । आप गुणे करी लोक ने, घणो हरख पमाडे || १ || सा० ॥ जे नर बहु छोरु जो, बे नर संयोगे । ते छोरु सघलां भलां, आवे सहुने भोगे ॥ २ ॥ सा० ॥ जोवे ॥ ३ ॥ सा० ॥ सात कान तेहने छे, चांपतां रोवे । सभा मांहि नाग़ो रहे, हने सहु एक उदर छे तेहने, मल मूत्र न राखे । अरधो केडे कंदोरडो, पंडित इम भाखे ||४|| सा० ॥ धनहर्ष पंडित इम भणे, जो तुम्ह समर्थ । गरथ न कांइ मांगिये, कहो एहनो अर्थ ॥ ५ ॥ सा० ॥ हिंदी शब्दार्थ : एक पुरुष सात स्त्रियों को अपने सिर पर उठा लेता है । अपने गुणों से सर्व लोक बहुत हर्षित करता है ।।१।। दो पुरुषों के संयोग से जो पुरुष पुत्र को जन्म दे, वह पुत्र सबका भला करता है और वह सबको पंसद आता है ||२|| उसके सात कान हैं, जिनको सहलाने से भी वह रोता है, सभा में नग्न रहता है और सब उसे देखते हैं ||३|| उसे एक For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87