Book Title: Adhyatmik Hariyali
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Narpatsinh Lodha
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( ३४ ) हरियाली तोरे होरा, सुण रे मारा वीरा । एक रूख तीन फल लागा, गुज वैगण ने जीरा ॥१८॥ (तजारो) हरियाली तो जेहने कहीये, जेहने होये होवे सांन । एक पुरुष जाति दीठ, जणीरे पुंछड च्यार कान ॥१६॥ (तीर) पातल पान सुंकड जड, विण पुल्या फल होय । राध्या ने वरस दन होय, वासी कहै न कोय ॥२०॥ (मुल) बाप बेटो एकण ढाम, बेटो जाये गामो गाम । बाप बेटा को एकज नाम, कहो अर्थ के छोडो गांम ॥२१॥ (माँखें) एक नारी नवरंगी चंगी, पहरेण नवगजा साड़ी। नाक फाड नकफूली गाली, च्यारुं अंग उगाड़ी ॥२२॥ (सुई) विन पगल्या पखत चढे, विण दांतां खड खाय । हुं तो है पुछु पिंडता, किसो जिनावर जाय ॥२३॥ (दातलो) एक सींगो दोय सींगो, चामडी करडी हाड ज मीठो वाण्यां बामण ने, खातो दी ठो ॥२४॥ (सिंघोडा) राज काज सब आगला, भूत सरीखी देह । पीयं पधारो चोहटे, तो मुझ मोकलज्यौ तेह ॥२५॥ (नारियल) एक नारी नवरंगी चंगी, कलहड ए जाइ । खणीया खेतारती दीठी, कहे रे मोरा ताइ ॥२६॥ (जलेबी) घुरकाती फागुण वचें, जलरो दाखो छेह । वाट जोवे छे तेहनी, जुय पीया मेह ॥२७॥ (कागज-पत्र)
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