Book Title: Adhyatmik Hariyali
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Narpatsinh Lodha

View full book text
Previous | Next

Page 60
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ४२ ) मेडीये दीवडो रे में तो सपना मां दीठो, कंकु केसर केरा छांटणा जी रे ॥ सूता जागो रे मारी नणदीना वीरा ! सपना ना अरथ उकेल जो जी रे ॥ उपरोक्त पद्य में निम्न नॉ रूपकात्मक समी करण है :कंथ-मोती का चौक, नणंद-हरियाली, पीहर-ऊंडा जलहल, पुत्र-दीवडो, पुत्रवधु-कुंकु, भाई-हस्ति, ससुर-आंबलो (आम), ससुर-मानसरोवर, सास-जांवत्री। हिंदी शब्दार्थ : ____ मैं तो अपने रंग महल में सो रही थी, सोते सोते ही मुझे स्वप्न दिखाई दिया। स्वप्न में मैंने एक गहरी झील देखी, यह मानसरोवर के समान भरी हुई दिखाई दे रही थी। मैंने आंगन में घूमते हुए भरे हुए कुंभ कलश स्वप्न में देखे । मैंने स्वप्न में आंगन में आम का पेड़ देखा, कोने-कोने में जायफल ओर जावित्री के झाड़ देखे । मैंने स्वप्न में मोतियों से भरा चौक देखा, वह स्थान बहुत हरा भरा था। मैंने स्वप्न में छत पर दीपक जलते देखा, कुंकुम और केसर के छींटे देखे । हे मेरी ननद के भाई ! नींद से उठो और मेरे स्वप्न का अर्थ करो। For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87