Book Title: Adhyatmik Hariyali
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Narpatsinh Lodha

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Page 10
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यह साहित्य बुद्धि विनोद पर आधारित है और गूढ़ रहस्य से भरा हुआ है । अतः इसे समझने हेतु जिज्ञासु को अपने मस्तिष्क को व्यायाम करना पड़ता है। इसमें तर्क की प्रधानता है और बिना तार्किक बुद्धि के इसे समझना संभव नहीं हैं । इस साहित्य में सांसारिक जीवन की बातों के माध्यम से आध्यात्म के गंभीर विषय को समझाने का अद्भुत प्रयास किया गया है जिसके कुछ उदाहरण प्रस्तुत है । प्रस्तुत पुस्तक में पृष्ट २६ पर मुनिराज श्री विनयसागरजी द्वारा रचित यह एक पद्य है TELY आठ नारी मली एक सुत जायो, बेटे बाप वधार्यो । चोर वस्यो मंदिर मां आवी, घरथी साह कढ़ायो || यहाँ ज्ञानावरणय, दर्शनावरर्णीय, वेदनीय, मोहनी, आयुष्यं, नाम, गोत्र एवं अंतराय के आठों कर्मो की उपमा आठ नारियों से दी गई है जिन्होंने मिलकर संसार रुपी पुत्र को जन्म दिया है जिसने मोह रुपी पिता को बढ़ाया है । परिणाम स्वरुप विषय वासना रूपी चोर शरीर रुपी मंदिर में जम कर बैठ गया है और शील रूपी सेठ को घर से निकाल कर बाहर कर दिया है । मुनिराज श्री ज्ञानविजयजी ने मोती को समझाने के लिये उसकी उपमा जल में उत्पन्न होने वाले फल से दी है । पुस्तक के पृष्ट ३२ पर यह पद्य इस प्रकार है : जल मांही फल नीपजे, वरण डांडी फल होय । रावां के घर ही हौवे, रांका के घर नांहि ॥ FIVE अर्थात् मोती एक ऐसा फल है जो समुन्द्र में ही उत्पन्न होता है और उस फल में कोई डांडी या डंठल भी नहीं होता । परिवारों में ही होता है निर्धनों में नहीं । मुनि श्री ने यह फल संपन्न इसी कड़ी में For Private And Personal Use Only

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