Book Title: Adhyatmik Hariyali
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Narpatsinh Lodha

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Page 26
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 8 ) बढ़ाया है। देव की कृपा से वे उडकर मेरे पास आये हैं। हे पवित्र कुलवधु ! तुझे धन्य है ! इसके अनुभव को जो प्राप्त करेंगे, वे सुंदर शिव-वधु को प्राप्त करेंगे। आनन्दघन यह सज्झाय पढते हैं, जिससे सुनना कानों को सुखदायी लगता है । हरियाली (१) कहिये पंडित कोण ए नारी, वीस वरस नी अवधि विचारी ॥१॥ दोय पिताए एह निपाई, संघ चतुर्विध मनमें आई ॥क. ॥२॥ कीडीए एक हाथी जायो, हाथी सामो ससलो धायो ॥क. ॥३॥ विण दीवे अजवाल थाये, कोडो ना दर मांहि कुंजर जाये॥क. ॥४॥ वरसे अग्नी ने पाणी दीपे, कायर सुभट तणा मद जोये ॥क. ॥५॥ ते बेटीये बाप निपायो, तेणे तास जमाइ जायो ॥क ॥६॥ मेह वरसतां बहु रज उडे, लोह तरे ने तरणु बुडे ।।क. ॥७॥ तेल फिरे ने घाणी पिलाए, घरंटी दाणे करीय दलाये ॥क. ॥८॥ बीज फले ने शाखा उगे, सरोवर आगे समुद्र न पूगे ॥क. ॥६॥ पंक जरे ने सखर जामे, भमे माणस तिहां घणे विसामे ॥क. ॥१०॥ प्रवहण उपरि सागर चाले, हरिण तणे बले डूंगर हाले॥क. ॥११॥ एहनो अर्थ विचारि कहियो, नहितर गर्व म कोइधरियो ।क.।।१२।। श्रीनयविजय विबुध ने शिष्ये, कही हरियाली मनह जगीसे।।क.॥१३॥ ए हरियाली जेनर कहेश्ये, वाचक जस जपे ते सुख लहेस्य ॥क.।।१४।। हिंदी शब्दार्थ : हे पंडित ! बीस वर्ष तक सोच कर कहें कि वह स्त्री कौन है ? ॥१॥ दो पिता ने जिसे जन्म दिया, चतुर्विध संघ को जो पसंद आई ।।२।। चिउटी ने हाथी को जन्म दिया, हाथी के सामने खरगोश For Private And Personal Use Only

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