Book Title: Adhyatmasara Author(s): Yashovijay, Veervijay Publisher: Adhyatmagyan Prasarak Mandal View full book textPage 8
________________ योगिनां प्रीतये पद्यमध्यात्मरसपेशलं । . भोगिनां भामिनीगीतं संगोतकमयं यथा ॥ ८॥ अर्थ-घणां शास्त्रोथी भली रीतें परिचयकरीने ने वली पंडितलोकोना संप्रदायथकी जे अध्यात्मशास्त्रने विषे अनुभव थयो तेथकी हूं कांइक संक्षेप मात्र प्रस्तावना करूं छु ।।७।। जे रीते भोगीपुरुषने स्त्रीनां गीतसंगीत प्रियकारी लागे छे ते रीते योगीश्वर पुरुषने प्रीतिना अर्थे अध्यात्मरसे करीने मनोहरकारी एवो आ ग्रन्थ पद्यबंधताये करुं छं ॥८॥ अथ अध्यात्ममाहात्म. कांताधरसुधास्वादा यूनां यजायते सुखं । विदुः पार्थे तदध्यात्मशास्त्रस्वादसुखोदधेः ॥९॥ अध्यात्मशास्त्रसंभूत संतोषसुखशालिनः । गणयंति न राजानं न श्रोदं नापि वासवम् ॥१०॥ ___अर्थ-स्त्रीना अधररूप अमृतना स्वादथी जुवान पुरुषने जे सुख उपजे छे ते सुखनो स्वाद अध्यात्मशास्त्रना स्वादनो जे समुद्र छे तेना एक बिंदुमात्र छे ॥९॥ जे प्राणीने अध्यात्मशास्त्रथी मनोहर संतोषरूप सुख प्राप्त थयुं ते प्राणी राजाने तथा धनदने अने इंद्र सरिखाने पण लेखामां गणतो नथी ॥ १० ॥ यः किलाशिक्षिताध्यात्मशास्त्रः पांडित्यमिच्छति। उत्क्षिपत्यंगुली पंगुः स स्वद्रुफललिप्सया ॥११॥ दंभपर्वतदंभोलिः सौहार्दा बुडिचंद्रमाः। अध्यात्मशास्त्रमुत्ताल मोहजालवनानलः ॥१२॥ अर्थ:--जेम कल्पवृक्षना फलने लेवानी इच्छाये पांगलो पुरुष आंगली ऊंची करे छे ते जेम व्यर्थ छे, तेम जे प्राणी निश्चेPage Navigation
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