Book Title: Adhyatmasara
Author(s): Yashovijay, Veervijay
Publisher: Adhyatmagyan Prasarak Mandal

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Page 6
________________ श्री यशोविजयजी उपाध्यायकृत अध्यात्मसार (सार्थ) ऐंद्रश्रेणिनतः श्रीमान्नंदतान्नाभिनंदनः | उद्दधार युगादौ यो जगदज्ञान पंकतः ॥ १ ॥ श्रीशांतिस्तांतिभिभूयाद्भविनां मृगलांछन । गावः कुवलयोल्लासं कुर्वते यस्य निर्मलाः ॥ २ ॥ अर्थ — इंद्र संबंधी जे श्रेणि तेणे नत के० नमस्कार कर्यो छे जेनेवा अने अष्ट महा प्रातिहार्यरूप लक्ष्मीए करी युक्त तथा युगने आदे जगत्ने अज्ञानरूप कादवमांथी उद्धार करनार एहवा जे श्री ऋषभदेव भगवान् ते जयवंता वर्तो ! ॥ १ ॥ श्रीशांतिनाथ भगवंत ते भव्यप्राणीओ प्रति संतापना भेदनारा थाओ ! मृगनुं लांछन छे जेने एवा तथा जेम चंद्रकिरण निर्मल थकां कुमुदिनीने विकसित करे छे तेमजेनी गावः के० वाणी ते पृथ्वीने विषे उल्लास करे छे ॥ २ ॥

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