Book Title: Adhyatmasara Author(s): Yashovijay, Veervijay Publisher: Adhyatmagyan Prasarak Mandal View full book textPage 4
________________ कलममांथी टपकी रहेलां आजे पण देखाय छे. भाषामां तेना लेखकना मानसनुं प्रतिबिंब पडे छे. तेमना अनेक लखाणोमांथी आपणे एक एवा यशोविजयनी कल्पनामूर्ति घडी शकीए छीए के जे तेओनी जीवंतमूर्ति सदाच अत्यंत निकटं साम्य धरावती होय. तेओभी संस्कृतना महा विद्वान हता. परंतु विद्वान के पंडित कहेवडाववा माटे ते जमानामां जडबातोड शब्दो, क्लिष्ट समासो अने भारेखम भाषानो उपयोग करवानी आवश्यकता रहेती हती. तेवी भाषा न लखनार पंडितोनी टीकाने पात्र थतो, पंडितोमां तेनी गणना थती नहि. श्रीमद् यशोविजयजीनामां पंडितोनी भाषा वापरवानी शक्ति हती, परंतु तेमने सामान्य जनसमूहने प्रबोधवो हतो. एवी क्लिष्ट भाषा वापरी ग्रंथने समजी न शकाय एवा कोयडारूप बनाववानी तेमनी इच्छा नहोती. पंडितोनी टीका पण कातिल हती. जनसमूहनी अने पंडितो बच्चेनी भाषानी खेचाखेंची तेमना पोताना शब्दोमां आ प्रमाणे छे. “ जे वारे पोतानी मेळे पद वांचतां अर्थ सूझे एवा अल्पार्थ ने सुगम पद जो अमे जोडीये तो खल माणस एम कहेशे जे, आ ग्रंथमां कां सार नथी, वळी जो अमे गंभीर अर्थ सहित पद बांधीए तो खल माणस कहेशे के कठण पद बांध्यां छे, एनो शुं अर्थ करीए ? ए तो मुंगानी पारसी छे. एवे ग्रंथे कोइने गुण न ( अ. सा. प्रशस्ति श्लो० ४ ) तेमनो आखो ग्रंथ अवलोकतां जणाय छे के तेओश्रीए काव्यनुं अने विषयनुं गौरव साचववा छतां भाषानी सरळता टकावी राखी छे, अने पंडितअपंडित बच्चे समाधान स्वीकारी समतुला जाळवी बनेनी commart पर थवा प्रयत्न कर्यो छे. ,, थाय. ५Page Navigation
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