Book Title: Adhyatmasara Author(s): Yashovijay, Veervijay Publisher: Adhyatmagyan Prasarak Mandal View full book textPage 5
________________ आ ग्रंथ उपर पंडित वीरविजयजी गणीए अर्थ भर्या छे. श्रीवीरविजयजीना परिचयनी जैन समाजने के साहित्यरसिक बाचकने भाग्येज जरूर छे. तेमनी भाषानी मीठाश अने ललित उपमाओमां तेओ बीनहरिफ छेतेमनी पूजाओथी भाग्येज जैननुं नानुं बाळक पण अजाण हशे. पर्युषणना पवित्र दिवसोमां मंदिरे मंदिरे तेमनी पूजाओना मधुर घोष कर्णपटल पर अथडाय छे. तेमना काव्योनी प्रासादिकता अने मधुरता पर मात्र जैनो नहि जैनेतरो पण मुग्ध बन्या छे ए सर्वविदित छे. तेमना जेवा समर्थ पुरुषने हाथे लखायेलो टबो बीजा कोइ लेखकना करतां वधारे प्रमाणिक होइ शके ए स्वाभाविक छे. संस्कृत नहिं जाणनार वर्ग उपर तेमनो उपकार अनहद छे. आ युगमा ज्यारे अध्यात्मज्ञान तरफ विशेष बेदरकारी बतावाती जाय छे, ज्यारे अध्यात्मशास्त्रना गहन समुद्रमा डुबकी मारवाने बदले थोडाएक आचारविचारो अने पंडिताइ पाछळ मथी धर्मना किनारा उपर घूम्या करवामां आवे छे, ज्यारे धर्म, धर्मधूरंधरो माटे, कुरुक्षेत्रनुं मेदान पूरं पाडे छे तेवा समये आश मार्गसूचक ग्रन्थनी खास जरूर छे. थोडाएक विचारवंत पुण्यात्माओ आ ग्रंथ वांची अध्यात्मज्ञानने मार्गे वळशे अने अध्यात्म रसनो यत्किचित् आस्वाद करवा पण शक्तिवान् थशे तो ग्रन्थलेखकनो श्रम सफळ थयो गणाशे. राजमहेल रोड, वडोदरा. .. नागकुमार मकाती ता. १-८-२७ बी. ए; एलएल. बी.Page Navigation
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