Book Title: Acharang Sutram Pratham Shrutskandh
Author(s): Punyakiritivijay
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
View full book text ________________ श्रीआचाराङ्गं नियुक्तिश्रीशीला० वृत्तियुतम् श्रुतस्कन्धः१ // 439 // द्युतं, प्राणिनोऽपरैरेवं घातयन्घ्नतश्चापि समनुजानासि गौरवत्रिकानुबद्धः पचनपाचनादिक्रियाप्रवृत्तांस्तत्पिण्डती तत्समक्षं ताननु- श्रुतस्कन्धः१ वदसि कोऽत्र दोषो?, न ह्यशरीरैर्द्धर्म: कर्तुं पार्वते, अतो धर्माधारं शरीरं यत्नतः पालनीयमिति, उक्तंच-शरीरं धर्मसंयुक्तं, षष्ठमध्ययनं रक्षणीयं प्रयत्नतः / शरीराज्जायते धर्मो, यथा बीजात्सदङ्करः॥१॥ इति, किं चैवं ब्रवीषि त्वम्, तद्यथा- घोर: भयानको धर्मः। चतुर्थोद्देशकः सर्वानवनिरोधात् दुरनुचरः उत्-प्राबल्येनेरित:- कथितः प्रतिपादितस्तीर्थकरगणधरादिभिरित्येवमध्यवसायी भवांस्तमनुष्ठानत सूत्रम् 190 गौरवत्रिकउपेक्षते उपेक्षां विधत्ते, णं इति वाक्यालङ्कारे, अनाज्ञया तीर्थकरगणधरानुपदेशेन स्वेच्छया प्रवृत्त इति, क एवम्भूत इति धूननम् दर्शयति- एष इत्यनन्तरोक्तोऽधर्मार्थी बाल आरम्भार्थी प्राणिनां हन्ता घातयिता घ्नतोऽनुमन्ता धर्मोपेक्षक इति, विषण्ण: कामभोगेषु, विविधं तदंतीति वितर्दो हिंसकः तर्द हिंसाया मित्यस्मात् कर्तरि पचाद्यच, संयमे वा प्रतिकूलो वितर्दः इत्येवंरूपस्त्वमेष व्याख्यात इत्यतोऽहं ब्रवीमि- त्वं मेधावी धर्मं जानीया इति // 189 // एतच्च वक्ष्यमाणमहं ब्रवीमीत्यत आह किमणेण भो! जणेण करिस्सामित्ति मन्नमाणे एवं एगे वइत्ता मायरं पियरं हिच्चा नायओय परिग्गहं वीरायमाणा समुट्ठाए अविहिंसा सुव्वया दंता पस्स दीणे उप्पइए पडिवयमाणे वसट्टा कायरा जणा लूसगा भवंति, अहमेगेसिं सिलोए पावए भवइ, से समणो भवित्ता विन्भंते 2 पासहेगे समन्नागएहिं सह असमन्नागए नममाणेहिं अनममाणे विरएहिं अविरए दविएहिं अदविए अभिसमिच्चा पंडिए मेहावी निट्ठियढे वीरे आगमेणं सया परक्कमिजासि // सूत्रम् १९०॥त्तिबेमि॥ इति धूताध्ययने चतुर्थ उद्देशकः 6-4 // केचन-विदितवेद्या वीरायमाणा: सम्यगुत्थानेनोत्थाय पुनः प्राण्युपमर्दका भवन्तीति, कथमुत्थाय?- किमहमनेन भोः। इत्यामन्त्रणे जनेन मातापितृपुत्रकलत्रादिना स्वार्थपरेण परमार्थतोऽनर्थरूपेण करिष्यामीति, न ममायं कस्यचिदपि कार्यस्य रोगापनयनादेरलमित्यतोऽनेन किमहं करिष्ये?, यदिवा प्रविव्रजिषुः केनचिदभिहित: किमनया सिकताकवलसन्निभया प्रव्रज्यया // 439 //
Loading... Page Navigation 1 ... 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586