Book Title: Acharang Sutram Pratham Shrutskandh
Author(s): Punyakiritivijay
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
View full book text ________________ श्रीआचाराचं नियुक्तिश्रीशीला० वृत्तियुतम् श्रुतस्कन्धः१ // 478 // श्रुतस्कन्धः१ अष्टममध्ययनं विमोक्षम्, तृतीयोद्देशकः सूत्रम् 206-207 परिसहसहनम् ओए दयं दयइ, जे संनिहाणसत्थस्स खेयन्ने से भिक्खू कालन्ने बलन्ने मायन्ने खणन्ने विणयन्ने समयन्ने परिग्गहं अममायमाणे कालेणुट्ठाइ अपडिन्ने दुहओ छित्ता नियाई।सूत्रम 206 // ओजः एको रागादिरहितः सन् सत्यपि क्षुत्पिपासादिपरीषहे दयामेव दयते कृपां पालयति, न परीषहै: तर्जितो दयां खण्डयतीत्यर्थः / कः पुनर्दयां पालयतीत्याह-यो हि लघुका सम्यनिधीयते नारकादिगतिषु येन तत्सन्निधानं कर्म तस्य स्वरूपनिरूपकं शास्त्रं तस्य खेदज्ञो- निपुणो, यदिवा सन्निधानस्य-कर्मणः शस्त्रं- संयमः सन्निधानशस्त्रं तस्य खेदज्ञ:सम्यक् संयमस्य वेत्ता, यश्च संयमविधिज्ञः स भिक्षुः कालज्ञ:- उचितानुचितावसरज्ञः, एतानि च सूत्राणि लोकविजयपञ्चमोदेशकव्याख्यानुसारेण नेतव्यानीति, तथा बलज्ञो मात्रज्ञः क्षणज्ञो विनयज्ञ: समयज्ञः परिग्रहममत्वेन अचरन् कालेनोत्थायी अप्रतिज्ञः उभयतश्छेत्ता, स चैवम्भूतः संयमानुष्ठाने निश्चयेन याति निर्यातीति // 206 // तस्य च संयमानुष्ठाने परिव्रजतो यत्स्यात्तदाह____ तंभिक्खुंसीयफासपरिवेवमाणगायं उवसंकमित्ता गाहावई बूया-आउसंतोसमणा! नोखलु ते गामधम्मा उव्वाहंति?, आउसंतो गाहावई! नो खलु मम गामधम्मा उव्वाहंति, सीयफासं च नो खलु अहं संचाएमि अहियासित्तए, नो खलु मे कप्पइ अगणिकायं उज्जालित्तए वा पज्जालित्तए वा कायं आयावित्तए वा पयावित्तए वा अन्नेसिं वा वयणाओ, सिया स एवं वयंतस्स परो अगणिकायं उज्जालित्ता पजालित्ता कायं आयाविज वा पयाविज वा, तं च भिक्खूपडिलेहाए आगमित्ता आणविजा अणासेवणाए त्तिबेमि॥ सूत्रम् 207 // 8-3 // तं अन्तप्रान्ताहारतया निस्तेजसं निष्किञ्चनं भिक्षणशीलं भिक्षुमतिक्रान्तसोष्मयौवनावस्थं सम्यक्त्वक्त्राणाभावतया 0 बालज्ञो (प्र०)। // 478 //
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