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सामायिक ज्ञानातिचार सूत्र
(ब) मनुष्य की हड्डी १०० हाथ के अन्दर, चाहे वह पृथ्वी में गड़ी हो, जब तक वह जली और धुली न हो १२ वर्ष तक अस्वाध्याय काल रहता है।
(स) उपाश्रय के निकट के गृह में लड़की उत्पन्न हो तो आठ दिन और लड़का उत्पन्न हो तो ७ दिन का अस्वाध्याय रहता है । इसमें दिवाल से संलग्न सात घर (७०-८० फीट लगभग) की मर्यादा मानी जाती है।
(द) तिर्यंच संबंधी प्रसूति हो तो जरा गिरने के बाद तीन प्रहर अस्वाध्याय का समझना चाहिए।
नोट- उपाश्रय के सामने वाले घर में लड़का-लड़की या तिर्यंच की प्रसूति हुई हो और बीच में राजमार्ग हो तो अस्वाध्याय नहीं मानना ।
(य) स्त्रियों के मासिक धर्म का अस्वाध्याय तीन दिन-रात का या जब तक रक्त स्त्राव की स्थिति बनी रहे ।
१४. अशुचि - मल-मूत्र की गंध आवे या दृष्टि गोचर हो तो जब तक ऐसा हो, तब तक अस्वाध्याय गिनना चाहिए ।
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१५. श्मशान श्मशान भूमि के चारों ओर १०० - १०० हाथ तक स्वाध्याय नहीं
करना चाहिए ।
१६. चन्द्र ग्रहण अस्वाध्याय रहती है ।
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चन्द्र ग्रहण होने पर जघन्य ८ प्रहर, उत्कृष्ट १२ प्रहर तक
यदि खण्ड चन्द्र ग्रसित ( ग्रहण) हो तो उस रात्रि के चार प्रहर तथा आगामी दिवस के चार प्रहर कुल आठ प्रहर अस्वाध्याय रहता है और यदि पूर्ण चन्द्र ग्रहण हो तो उस रात्रि के चार प्रहर एवं आगामी अहोरात्र यह कुल १२ प्रहर का अस्वाध्याय रहता है।
१७. सूर्य ग्रहण - सूर्य ग्रहण जब अपूर्ण (खण्ड) हो तो चार प्रहर उस दिन के तथा चार रात्रि के तथा चार आगामी दिवस के इस प्रकार कुल १२ प्रहर अस्वाध्याय रहता है।
सूर्यग्रहण जब पूर्ण हो तो उस दिन-रात के आठ तथा आगामी दिन-रात के आठ ये कुल १६ प्रहर का अस्वाध्याय होता है ।
नोट - चन्द्रग्रहण की रात्रि के प्रारम्भ से एवं सूर्यग्रहण के दिन के प्रारम्भ से अस्वाध्याय काल मानने की परम्परा है।
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