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___ आवश्यक सूत्र - चतुर्थ अध्ययन
अर्हन्त की शरण स्वीकार करता हूँ, सिद्धों की शरण स्वीकार करता हूँ, साधुओं की शरण स्वीकार करता हूँ केवली-सर्वज्ञ प्ररूपित धर्म की शरण स्वीकार करता हूँ।
विवेचन - प्रस्तुत मांगलिक पाठ में जीव के लिये चार मंगल, चार उत्तम और चार . शरण रूप पद बताये गये हैं -
१. चत्तारि मंगलं - चार मंगल हैं - १. अर्हन्त २. सिद्ध ३. साधु और ४. केवलि प्ररूपित धर्म।
जिससे हित की प्राप्ति हो, जो आत्मा को संसार से अलग करता हो, जिससे आत्मा शोभायमान हो, जिससे आनंद तथा हर्ष प्राप्त होता हो एवं जिसके द्वारा आत्मा. पूज्य बनती. हो, वह मंगल है। ____ मंगल दो प्रकार के हैं - १. लौकिक मंगल और. २. लोकोत्तर मंगल। दधि, चावल, फूल आदि लौकिक मंगल माने गये हैं जबकि अर्हन्त आदि लोकोत्तर मंगल हैं। लौकिक मंगल तो अमंगल हो जाते हैं किंतु सूत्रोक्त चारों लोकोत्तर मंगल कभी अमंगल नहीं होते। अर्हन्त, सिद्ध, साधु का पूर्व में विवेचन किया जा चुका है।
केवलिपण्णत्तो धम्मो - केवलज्ञानी सर्वज्ञों द्वारा कहा हुआ धर्म केवली प्ररूपित धर्म है। जो केवलज्ञानी नहीं हैं वे अनाप्त हैं और अनाप्त का कथन प्रामाणिक्र नहीं माना जा सकता है अत एव धर्म के प्रवक्ता सर्वज्ञ - साक्षाद् द्रष्टा होने चाहिये। जब ज्ञानावरणीय कर्म का पूर्णतया नाश एवं क्षय हो जाता है तब आत्मा में केवलज्ञान प्रकट होता है। केवली में सम्पूर्ण पदार्थों के वास्तविक स्वरूप को स्पष्ट जानने का पूर्ण सामर्थ्य होता है अतः ऐसे केवली का कहा हुआ धर्म ही सच्चा धर्म है। इसीलिये यहां धर्म के लिये 'केवलिपण्णत्तो' विशेषण दिया गया है।
२. चत्तारि लोगुत्तमा - लोक में चार उत्तम हैं - १. अर्हन्त २. सिद्ध ३. साधु और ४. केवलिप्ररूपित धर्म। उत्तम का अर्थ है - ऊंचा होना, विशेष ऊंचा होना, सबसे ऊंचा होना। जिसका उत्थान पुनः पतन की ओर न जाय और न अपने स्नेही को पतन की ओर ले जाय वही वस्तुतः उत्तम होता है। अनंतकाल से भटकती हुई भव्य आत्माओं को उत्थान के पथ पर ले जाने वाले - अर्हन्त, सिद्ध, साधु और केवलिप्ररूपित धर्म ही उत्तम हैं। ___ 3. चत्तारि सरणं पव्वज्जामि - चार शरण स्वीकार करता हूं। संसार में वही उत्तम शरण है जो हमें त्राण देता है, संकटों से उबारता है, भय से विमुक्त करके निर्भय
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