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आवश्यक सूत्र - परिशिष्ट द्वितीय
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उनका सर्वथा त्याग। ४. पर्व तिथियों को घर में आरंभ नहीं होना, जीवों के प्रति विशेष अनुकम्पा का लक्ष्य आदि कई लाभ हैं । यह सबके लिए उपयोगी हो सकता है ।
२. सचित्त प्रतिबद्धाहार - सचित्त वृक्षादि से सम्बद्ध अचित्त गोन्द या पक्के फल आदि खाना अथवा सचित्त बीज से सम्बद्ध अचित्त खजूर आदि खाना या बीज सहित फल को यह सोचकर खाना कि इसमें अचित्त अंश खा लूंगा और संचित बीजादि अंश को फेंक दूंगा, " सचित्तप्रतिबद्धाहार" है ।
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३. अपक्व औषधि भक्षण का आहार करने से अपक्व औषधि
अपक्व अर्थात् पूरी तरह अचित्त न बने हुए पदार्थों भक्षण अतिचार लगता है।
४. दुष्पक्व औषधि भक्षण
दुष्पक्व अर्थात् अधपके या अविधि से पके हुए या बुरी तरह से विशेष हिंसक तरीके से पकाये गये पदार्थ जैसे छिलके समेत सेके हुए भुट्टे, होले, ऊंबी आदि का आहारं करना, दुष्पक्व औषधि भक्षण अतिचार है ।
५. तुच्छौषधि - तुच्छ अर्थात् अल्प सार वाले - जिसमें खाने का अंश कम और फेंकने का अंश ज्यादा हो जैसे- सीताफल, गन्ना आदि, ऐसे पदार्थों का भक्षण करने से तुच्छौषधि भक्षण अतिचार लगता है ।
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कर्मादान - जिन धन्धों और कार्यों से ज्ञानावरणीय आदि कर्मों का विशेष बन्ध होता है, उन्हें "कर्मादान" कहते हैं । अथवा कर्मों के हेतुओं को कर्मादान कहते हैं । कर्मादान पन्द्रह हैं। जिनका स्वरूप इस प्रकार है
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१. इंगालकम्मे ( अंगार कर्म ) - अंगार अर्थात् अग्नि विषयक कार्य को " अंगारकर्म" कहते हैं। अग्नि से कोयला बनाने और बेचने का धंधा करना । इसी प्रकार अग्नि के प्रयोग से होने वाले दूसरे कर्मों का भी इसमें ग्रहण हो जाता है जैसे कि ईंटों के भट्टे पकाना आदि ।
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२. वणकम्मे ( वन कर्म ) वन विषयक कर्म को "वन कर्म" कहते हैं। जंगल की खरीद कर वृक्षों और पत्तों आदि को काट कर बेचना और उससे आजीविका करना वनकर्म है । इसी प्रकार ( वनोत्पन्न) बीजों का पीसना (आटे आदि की चक्की) भी वन कर्म है।
३. साड़ीकम्मे (शाकटिक कर्म ) - गाड़ी, तांगा, इक्का आदि तथा उनके अवयवों ( पहिया आदि ) को बनाने और बेचने आदि का धंधा करके आजीविका करना "शाकटिक कर्म" है ।
४. भाडीकम्मे (भाटी कर्म ) - गाड़ी आदि से दूसरों का सामान एक जगह से दूसरी
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