Book Title: Aavashyak Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 286
________________ आवश्यक सम्बन्धी विशेष विचारणा - आवश्यक के. पर्यायवाची शब्द २६५ (अ) गुणैर्वा आवासकं अनुरजकं वस्त्रधूपादिवत् - अर्थात् जो आत्मा को ज्ञानादि गुणों से अनुरंजित करे वह आवासक (आवश्यक) है। जैसे वस्त्र धूपादि से अनुरंजित किया जाता है। (ए) गुणवा आत्मानं आवासयति-आच्छादयति इति आवासकम् - अर्थात् जो ज्ञानादि गुणों के द्वारा आत्मा को आवासित - आच्छादित करे, वह आवासक (आवश्यक) है। जब आत्मा ज्ञानादि गुणों से आच्छादित रहेगी तो दुर्गुण-रूप धूल आत्मा पर नहीं पड़ने पाएगी। २.आवश्यक के पर्यायवाची शब्द एक पदार्थ के अनेक नाम परस्पर पर्यायवाची कहलाते हैं। अनुयोगद्वार सूत्र में आवश्यक के आठ पर्यायवाची शब्द बताये हैं - आवस्सर्य अवस्स-करणिज्ज, धुवनिग्गहो विसोही य। अज्झयणे छक्क वग्गो, नाओ आराहणा मग्गो। (अ) आवस्सयं (आवश्यक) - अवश्यं क्रियते इति आवश्यक - अर्थात् जो साधना चतुर्विध संघ के द्वारा अवश्य करने योग्य हो, उसे आवश्यक कहते हैं। (आ) अवस्सकरणिज (अवश्यकरणीय) - मुमुक्षु साधकों के द्वारा नियम-पूर्वक अनुष्ठेय (करने योग्य) होने के कारण अवश्यकरणीय है। (३) धुवनिग्गहो (ध्रुव निग्रह) - अनादि होने के कारण कर्मों को ध्रुव कहते हैं। कर्मों का फल जन्म जरा मरणादि संसार भी अनादि है अतः वह भी ध्रुव (अनादि) कहलाता है। जो कर्म और कर्मफल स्वरूप संसार का निग्रह करता है, वह ध्रुव निग्रह है। (ई) विसोही (विशोधि) - कर्मों से मलिन आत्मा की विशुद्धि का हेतु होने से आवश्यक, विशोधि कहलाता है। ___(3) अज्झ्य णे छक्कवग्गो (अध्ययन षट्वर्ग) - आवश्यक सूत्र के सामायिक आदि छह अध्ययन हैं। अतः अध्ययन षट्वर्ग है। ___(ॐ) नाओ (न्याय)- अभीष्ट अर्थ की सिद्धि का सम्यक् उपाय होने से न्याय है। अथवा आत्मा और कर्म के अनादिकालीन सम्बन्ध का अपनयन (दूर) करने के कारण भी न्याय कहलाता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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