Book Title: Aavashyak Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 284
________________ श्रावक आवश्यक सूत्र - प्रतिक्रमण करने की विधि २६३ बड़ी संलेखना का पाठ कहें। फिर खड़े हो कर 'तस्स धम्मस्स' का पाठ कह कर दो बार 'द्वादशावर्त सूत्र' कहें । पश्चात् दोनों घुटने नमा कर घुटनों के ऊपर दोनों हाथ जोड़ कर मस्तक को नीचा नमाकर एक नमस्कार-सूत्र कहकर पांच पदों की वन्दना कहें । फिर नीचे बैठ कर अनन्त चौबीसी आदि दोहे, आयरिय उवज्झाए, ढाई द्वीप, चौरासी लाख जीवयोनि, क्षमापना का पाठ व अठारह पापस्थान कहकर चौथा आवश्यक पूरा करें। पांचवें आवश्यक की आज्ञा लेवें । ५. पांचवें आवश्यक में प्रायश्चित्त का पाठ, एक नमस्कार सूत्र, प्रतिज्ञा सूत्र, इच्छामि ठामि और उत्तरीकरण सूत्र बोल कर कायोत्सर्ग करें। कायोत्सर्ग में चतुर्विंशतिस्तव सूत्र का ध्यान करें। (इसका विषेश वर्णन पृष्ठ १२५ पर देखें) 'णमो अरहंताणं' कह कर काउस्सग्ग पारे। काउस्सग्ग शुद्धि का पाठ बोलकर एक लोगस्स प्रकट कहकर दो बार द्वादशावर्त्त गुरु वन्दन सूत्र बोलें। फिर छठे आवश्यक की आज्ञा लेवें। . ६. छठे आवश्यक में खड़े होकर साधुजी महाराज से अपनी शक्ति अनुसार पच्चक्खाण करें। यदि साधुजी महाराज न हों तो बड़े श्रावकजी से पच्चक्खाण करें। यदि वे भी न हों तो फिर स्वयमेव 'गंठिसहियं मुट्ठिसहियं' का पाठ बोल कर पच्चक्खाण करें। 'प्रतिक्रमण का समुच्चय पाठ' बोल कर बायां घुटना खड़ा करके दो बार प्रणिपात सूत्र कहें। फिर तीन बार वन्दना करके अपने स्वधर्मी भाइयों को खमावें। फिर स्वाध्याय, चौबीसी और स्तवन आदि के द्वारा आत्म-गुणों में वृद्धि करें। ॥ द्वितीय परिशिष्ट समाप्त॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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