Book Title: Aavashyak Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 295
________________ २७४ आवश्यक सूत्र - परिशिष्ट तृतीय (इ) जस्स सामाणिओ अप्पा, संजमे नियमे तवे । . तस्स सामाइयं होड़, इइ केवलि भासियं ॥ जो समोसव्वभूएसु, तसेसु थावरेसु य । तस्स सामाइ होइ, इइ केवलि भासियं ॥ (अनुयोगद्वार सूत्र ) • अर्थ - जिसकी आत्मा संयम में, नियम में, तप में लीन हैं वस्तुतः उसी का सच्चा सामायिक व्रत है। ऐसा केवलज्ञानियों ने कहा है । . जो त्रस और स्थावर सभी प्राणियों पर समभाव रखता है, वस्तुतः उसी का सच्चा सामायिक व्रत है। ऐसा केवलज्ञानियों ने कहा है । नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव उक्त छह भेदों से साम्यभाव रूप सामायिक धारण किया जाता है। १. नाम सामायिक - शुभाशुभ नामों पर राग-द्वेष नहीं करना । २. स्थापना सामायिक स्थापित पदार्थ की सुरूपता कुरूपता को देखकर राग-द्वेष नहीं करना स्थापना सामायिक है । ३. द्रव्य सामायिक - सोने और मिट्टी में समभाव । आत्मा की दृष्टि से दोनों जड़ । ४. क्षेत्र सामायिक - चाहे सुन्दर बाग हो या कंटीली झाड़ियों से भरी हुई बंजर भूमि हो, दोनों में समभाव । " निश्चय नय की दृष्टि से प्रत्येक पदार्थ अपने में ही केन्द्रित रहता है। जड़ जड़ में रहता है, आत्मा आत्मा में रहता है । - Jain Education International - ********००० ५. काल सामायिक - वर्षा या कोई दूसरा मौसम हो समभाव रखना क्योंकि यह सब पुद्गलों का विकार है। ६. भाव सामायिक समस्त जीवों पर मैत्री भाव धारण करना भाव सामायिक है । भाव सामायिक के प्रकार और परिभाषा (१) आया सामाइए, आया सामाइयस्स अट्टै ॥ भगवती १-८ वस्तुतः अपने शुद्ध स्वरूप में रहा हुआ आत्मा ही सामायिक है। सामायिक का प्रयोजन भी शुद्ध, बुद्ध, मुक्त चिच्चमत्कार स्वरूप आत्म तत्त्व की प्राप्ति ही है । (२) सावज्ज जोग विरओ, तिगुत्तो छसु संजओ । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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