Book Title: Aavashyak Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 258
________________ श्रावक आवश्यक सूत्र - सामायिक व्रत २३७ ४. संजुत्ताहिगरणे (संयुक्ताधिकरण) - पृथक्-पृथक् स्थानों पर पड़े हुए शस्त्रों के अवयवों को मिलाकर एक स्थान पर रखना, शस्त्रों का विशेष संग्रह रखना संयुक्ताधिकरण कहलाता है । कार्य करने में समर्थ ऐसे ऊखल और मूसल, शिला और लोढ़ा, हल और फाल, गाड़ी और जूआ, धनुष और बाण, वसूला और कुल्हाड़ी आदि दुर्गति में ले जाने वाले अधिकरणों को जो साथ ही काम आते हैं, एक साथ रखना संयुक्ताधिकरण अतिचार है । ५. उवभोगपरिभोगाइरित्ते (उपभोग परिभोगातिरेक) - उपभोग परिभोग अधिक बढ़ाया हो अर्थात् उपभोग परिभोग में आने वाली वस्तुओं का अधिक संग्रह किया हो तो यह 'अतिचार लगता है। प्रश्न - कंदर्पादि से कौन-कौन से अनर्थदण्ड होते हैं? उत्तर - कंदर्प और कौत्कुच्य से अपध्यानाचरित और प्रमादाचरित अनर्थदण्ड होता है। मौखर्य से पापकर्मोपदेश, संयुक्ताधिकरण से हिंस्रप्रदान और उपभोग परिभोगातिरेक से हिंस्रप्रदान और प्रमादाचरित अनर्थदण्ड होता है। ९. सामायिक व्रत ___ नववां व्रत - सामायिक सावजं जोगं पच्चक्खामि जावनियमं पज्जुवासामि दुविहं तिविहेणं न करेमि न कारवेमि मणसा वयसा कायसा ऐसी मेरी सद्दहणा है प्ररूपणा है, सामायिक की शुद्ध फरसना करके शुद्ध होऊँ ॐ एवं नववें सामायिक व्रत के पंच अइयारा जाणियव्वा न समायरियव्वा तंजहा ते आलोउं - मणदुप्पणिहाणे, वयदुप्पणिहाणे, कायदुप्पणिहाणे, सामाइयस्स सइ अकरणया, सामाइयस्स अणवट्ठियस्स करणया, जो मे देवसिओ अइयारो कओ तस्स मिच्छामि दुक्कडं। कठिन शब्दार्थ - सामायिक - समभाव की साधना, सावज्जं जोगं - सावध योग का, जावनियमं - यावत् नियम तक, सद्दहणा - श्रद्धा, प्ररूपणा - प्ररूपणा - प्रतिपादन करना, मणदुप्पणिहाणे - मनोदुष्प्रणिधान - मन के अशुभ योग प्रवर्तायें हो, वयदुप्पणिहाणे ॐ जब सामायिक में न हो पौषधादि में हो तब इस प्रकार बोलें- ऐसी मेरी सद्दहणा प्ररूपणा तो है, सामायिक का अवसर आये, सामायिक करूं तब फरसना करके शुद्ध होऊं । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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