Book Title: Aavashyak Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 271
________________ २५० ******* आवश्यक सूत्र - परिशिष्ट द्वितीय मारणांतिक संलेखना की विधि इस प्रकार है । संलेखना का योग्य अवसर देख कर साधु-साध्वीजी की सेवा में या उनके अभाव में अनुभवी श्रावक-श्राविका के सम्मुख अपने व्रतों में लगे अतिचारों की निष्कपट आलोचना कर प्रायश्चित्त ग्रहण करना चाहिये । पश्चात् कुछ समय के लिए या यावज्जीवन के लिए आगार सहित अनशन लेना चाहिये। इसमें आहार और अट्ठारह पाप का तीन करण तीन योग से त्याग किया जाता है। यदि किसी का संयोग नहीं मिले तो स्वयं आलोचना कर संलेखना तप ग्रहण किया जा सकता है। यदि तिविहार अनशन ग्रहण करना हो तो "पाण" शब्द नहीं बोलना चाहिये। गादी, पलंग का सेवन, गृहस्थों द्वारा सेवा आदि कोई छूट रखनी हो तो उसके लिए आगार रख लेना चाहिये । शंका-उपसर्ग के समय संलेखना कैसे करनी चाहिये ? ************ समाधान जहां उपसर्ग उपस्थित हो, वहां की भूमि पूंज कर "णमोत्थुर्ण से विहरामि " तक पाठ बोलना चाहिये और आगे इस प्रकार बोलना चाहिये "यदि इस उपसर्ग से बचूं तो अनशन पालना कल्पता है, अन्यथा जीवन पर्यन्त अनशन है। ". शंका क्या संलेखना, आत्महत्या है ? Jain Education International समाधान - संलेखना, आत्महत्या नहीं है। संलेखना का उद्देश्य आत्मघात करने का . नहीं बल्कि आत्मगुण घातक अवगुणों के घात करने का है। संलेखना आत्मोत्थान की दृष्टि से की जाती है। यह आत्मशुद्धि और प्रायश्चित्त का महानतम व्रत है। यह घोर तप है और अंतिम घड़ियों में साधनाशील को चिरशांति प्रदान करने का प्रबल साधन है। आत्म-हत्या राग द्वेष एवं मोहवृत्ति से ही होती है। आत्मघात प्रायः लज्जा से, निराशा से, आवेश से किया जाता है। संथारे में प्राणनाश अवश्य हो जाता है परन्तु वह राग-द्वेष और मोह का कारण नहीं है। इसी कारण मारणांतिक संलेखना को हिंसा की कोटि में समाविष्ट नहीं किया जा सकता। संलेखना में प्रमाद का अभाव है क्योंकि इसमें रागादिक नहीं पाये जाते । रागादिक के अभाव के कारण ही संलेखना करने वाले को आत्मघात का दोष नहीं लगता । जैसे कोई व्यक्ति समाज सेवा और राष्ट्रसेवा के लिए बलिदान हो जाता है तो हम उसके बलिदान को आत्महत्या नहीं मानते । इसी प्रकार जो व्यक्ति आत्मशुद्धि और आत्मोत्थान के लिए अपना तन और मन धर्म साधना हेतु न्यौछावर कर देता है उसके इस महान् त्याग को आत्म हत्या कैसे माना जा सकता है? आत्म हत्या निंदनीय अपराध है, कायरतापूर्ण अधम कार्य For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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