Book Title: Aavashyak Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 272
________________ श्रावक आवश्यक सूत्र - पच्चीस मिथ्यात्व का पाठ २५१ है जबकि संलेखना पवित्र, प्रशंसनीय और आत्मोत्थान का वीरोचित कार्य है। अतः संलेखनासंथारे को आत्महत्या नहीं मानना चाहिये। यदि कोई मानता है तो यह उसकी भूल है। [तस्स धम्मरस का पाठ] [तस्स धम्मस्स केवलिपण्णत्तस्स अब्भट्रिओमि आराहणाए विरओमि विराहणाए तिविहेणं पडिक्कंतो वंदामि जिण-चउव्वीसं ।] कठिन शब्दार्थ - तस्स धम्मस्स - उस धर्म की, केवलिपण्णत्तस्स - केवली प्ररूपित, अब्भुटिओमि - उद्यत होता हूं, आराहणाए - आराधना के लिये, विरओमि - निवृत्त होता हूं, विराहणाए - विराधना से, तिविहेणं - तीन योग से, पडिक्कतो- प्रतिक्रमण करता हुआ, जिणचउव्वीसं - चौबीस तीर्थंकरों को। . भावार्थ - मैं उस केवली प्ररूपित धर्म की आराधना के लिए उद्यत होता हूँ, विराधना से निवृत्त होता हूँ और मन, वचन और काया द्वारा प्रतिक्रमण करता हुआ चौबीस तीर्थंकरों को वंदना करता हूँ। . - पच्चीस मिथ्यात्व का पाठ १. जीव को अजीव श्रद्धे तो मिथ्यात्व, २ अजीव को जीव श्रद्धे तो मिथ्यात्व, ३ धर्म को अधर्म श्रद्धे तो मिथ्यात्व, ४ अधर्म को धर्म श्रद्धे तो मिथ्यात्व, ५. साधु को असाधु श्रद्धे तो मिथ्यात्व, ६. असाधु को साधु श्रद्धे तो मिथ्यात्व, ७. मोक्ष के मार्ग को संसार का मार्ग श्रद्धे तो मिथ्यात्व, ८. संसार के मार्ग को मोक्ष का मार्ग श्रद्धे तो मिथ्यात्व, ९. मुक्त को अमुक्त श्रद्धे तो मिथ्यात्व, १०. अमुक्त को मुक्त श्रद्धे तो मिथ्यात्व, ११ आभिग्रहिक मिथ्यात्व १२ अनाभिग्रहिक मिथ्यात्व १३ आभिनिवेशिक मिथ्यात्व १४. सांशयिक मिथ्यात्व, १५. अनाभोग मिथ्यात्व, १६. लौकिक मिथ्यात्व, १७. लोकोत्तर मिथ्यात्व, १८ कुप्रावचनिक मिथ्यात्व १९ जिन धर्म से न्यून श्रद्धे तो मिथ्यात्व २०. जिन धर्म से अधिक श्रद्धे तो मिथ्यात्व, ... २१. जिन धर्म से विपरीत श्रद्धे तो मिथ्यात्व, २२. अक्रिया मिथ्यात्व, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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