Book Title: Aavashyak Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 278
________________ श्रावक आवश्यक सूत्र - श्रमण सूत्र के पाठों के विषय में चर्चा २५७ समाधान - श्रमण साधु का ही नाम है ऐसा संकुचित अर्थ शास्त्र सम्मत नहीं है। व्याख्याप्रज्ञप्ति (भगवती) सूत्र के बीसवें शंतक के आठवें उद्देशक में कहा है - "तित्थं पुण चाउव्वण्णा- इण्णे समणसंघे तंजहा - समणा, समणीओ, सावगा, सावियाओ" अर्थात् साधु, साध्वी, श्रावक-श्राविका इन चारों को श्रमण संघ कहते हैं। यद्यपि व्यवहार में श्रमण, साधु का ही नाम है तथापि भगवान् ने तो चारों तीर्थों को ही श्रमण संघ के रूप में कहा है। इस आप्त वाक्य को प्रत्येक मुमुक्षु को मानना चाहिए। ___ शंका - श्रमण सूत्र में साधु के आचार का ही कथन है, इसलिए साधु को ही पढ़ना उचित है, श्रावक के लिए उसका क्या उपयोग है? समाधान - श्रावक कृत अनेक धर्म क्रियाओं में श्रमण सूत्र के पाठ परम उपयोगी होते हैं। उदाहरण के लिए - १. जब श्रावक पौषधव्रत में या संवर में निद्राग्रस्त होते हैं तब निद्रा में लगे हुए दोनों से निवृत्त होने के लिए श्रमण सूत्र का प्रथम पाठ "इच्छामि पडिक्कमिउँ पगामसिञ्जाए" कहना चाहिए। निद्रा के दोषों से निवृत्त होने का अन्य कोई पाठ नहीं है। - २. ग्यारहवीं पडिमाधारी श्रावक भिक्षोपजीवी ही होते हैं तथा कई स्थानों पर दयाव्रत का पालन करने वाले श्रावक भी गोचरी करते हैं। उसमें लगे हुए दोषों की निवृत्ति करने के लिए दूसरा पाठ "पडिक्कमामि गोयरग्गचरियाए" कहना पड़ता है। .. ३. श्रावक-श्राविका ने सामायिक, पौषधव्रत में मुँहपत्ति तथा वस्त्र, पूंजनी आदि का प्रतिलेखन नहीं किया. हो तो उस दोष की निवृत्ति करने के लिए तीसरा पाठ "पडिक्कमामि चउकाल सज्झायस्स अकरणयाए" कहना चाहिये। - ४. चौथे पाठ में "एक बोल से लगाकर तेतीस बोल" तक कहे हैं। वे सब ही ज्ञेय (जानने योग्य) है कुछ हेय (छोड़ने योग्य) और कुछ उपादेय (स्वीकारने योग्य) है। अत: इन बोलों का ज्ञान भी. श्रावकों के लिए आवश्यक है। . ५. पांचवां पाठ "निर्ग्रन्थ प्रवचन" (नमो चउवीसाए) का हैं जिसमें जिन प्रवचन (शास्त्र) की एवं जैनमत की महिमा है तथा आठ बोलों में हेय-उपादेय का कथन है। वह भी श्रावकों के लिए परमोपयोगी है। ____ इस प्रकार श्रमण सूत्र में एक भी विषय या पाठ ऐसा नहीं है जो कि श्रावक के लिए अनुपयोगी हो। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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