Book Title: Aavashyak Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 274
________________ श्रावक आवश्यक सूत्र - पच्चीस मिथ्यात्व का पाठ २५३ ७. मोक्ष के मार्ग को संसार का मार्ग श्रद्धे तो मिथ्यात्व - मोक्ष मार्गसम्यग्ज्ञान, सम्यग्दर्शन, सम्यक् चारित्र और सम्यक् तप की या संवर निर्जरा की अथवा दान, शील तप, भाव की मखौल (मजाक) उड़ाना, उसे बहुमान्य न समझ कर संसार का हेतु समझना मिथ्यात्व है। ८. संसार के मार्ग को मोक्ष मार्ग श्रद्धे तो मिथ्यात्व - संसार मार्ग को मोक्ष मार्ग समझने का अर्थ है - मिथ्या श्रद्धा, ज्ञान, आचरण आदि को सम्यक् समझना, संसार बढ़ाने वाले लौकिक अनुष्ठानों को (यज्ञादि को) मोक्ष का हेतु समझना।। ९. मुक्त को अमुक्त श्रद्धे तो मिथ्यात्व - मुक्त आत्मा को संसार में लिप्त समझना, अहँत सिद्ध को कर्म मुक्त सुदेव नहीं मानना मिथ्यात्व है। १०. अमुक्त को मुक्त श्रद्धे तो मिथ्यात्व - रागी-द्वेषी को मुक्त समझना-इतर पंथों के देव जो राग-द्वेष से युक्त हैं, अज्ञानवश उन्हें मुक्त समझना मिथ्यात्व है । ११. आभिग्रहिक मिथ्यात्व - तत्त्व अतत्त्व की परीक्षा किये बिना ही पक्षपातपूर्वक, किसी तत्त्व को पकड़े रहना और अन्य पक्ष का खंडन करना आभिग्रहिक मिथ्यात्व कहलाता है। १२. अनाभिग्रहिक मिथ्यात्व - गुण दोष की परीक्षा किये बिना ही सब धर्मों को बराबर समझना अनाभिग्रहिक मिथ्यात्व कहलाता है। . १३. आभिनिवेशिक मिथ्यात्व - अपने पक्ष को असत्य जानते हुए भी कदाग्रह वश पकड़े हुए असत् आग्रहं को नहीं छोड़े, सत्य स्वीकार नहीं करे-ऐसे अतत्त्व के आग्रह को आभिनिवेशिक मिथ्यात्व कहते हैं। १४. सांशयिक मिथ्यात्व - देव, गुरु, धर्म के विषय में अथवा तत्त्व के विषय में शंकाशील होना, सांशयिक मिथ्यात्व है । जिनागमों में निरूपित तत्त्व, मुक्तात्मा के स्वरूप अथवा जिनेश्वरों की वीतरागता सर्वज्ञतादि में संदेह करना, आगमों की अमुक बात सत्य है या असत्य - इस प्रकार की शंका करना सांशयिक मिथ्यात्व के उदय का परिणाम है। सांशयिक मिथ्यात्व से बचने का एक मात्र उपाय जिनेश्वर के वचनों में दृढ़ विश्वास करना है। संशय उत्पन्न होने पर ऐसा विचार करना चाहिये कि - "तमेव सर्च णीसक ज जिणेहि पवेड्य" अर्थात वीतराग भगवन्तों ने जो फरमाया है वह सर्वथा सत्य है और निःशंक है अतः उसमें शंका नहीं करनी चाहिये । १५. अनाभोगिक मिथ्यात्व - अनाभोग का अर्थ है - उपयोग का न होना। अतः बिना उपयोग जो मिथ्यात्व लगता है, उसे अनाभोग मिथ्यात्व कहते हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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