Book Title: Aavashyak Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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श्रावक आवश्यक सूत्र - इच्छामि ठामि का पाठ
२११
इच्छामि ठामि 8 काउस्सग्गं * जो मे देवसिओ अइयारो कओ, काइओ, वाइओ,माणसिओ, उस्सुत्तो, उम्मग्गो, अकप्पो, अकरणिज्जो, दुल्झाओ, दुव्विचिंतिओ, अणायारो, अणिच्छियव्वो, असावगपाउग्गो, णाणे तह दंसणे, चरित्ताचरित्ते, सुए, सामाइए, तिण्हं गुत्तीणं, चउण्हं कसायाणं, पंचण्हमणुव्वयाणं, तिण्हं गुणव्वयाणं, चउण्हं सिक्खावयाणं, बारसविहस्स सावगधम्मस्स जं खंडियं, जं विराहियं, तस्स मिच्छामि दुक्कडं। ___ कठिन शब्दार्थ - जो मे - जो मैंने, देवसिओ - दिवस सम्बन्धी, अइयारो - अतिचार, कओ - किया हो, काइओ - काया सम्बन्धी, वाइओ - वचन सम्बन्धी, माणसिओ - मन सम्बन्धी, उस्सुत्तो - उत्सूत्र-सूत्र विपरीत कथन किया हो, उम्मग्गो - उन्मार्ग (जैन-मार्ग से विरुद्ध मार्ग) ग्रहण किया हो, अकप्पो - अकल्पनीय कार्य किया हो, अकरणिज्जो - अकरणीय-नहीं करने योग्य कार्य किया हो, दुज्झाओ - दुष्ट ध्यान ध्याया हो, दुव्विचिंतिओ - दुष्ट अशुभ चिन्तन किया हो, अणायारो - आचरण नहीं करने योग्य कार्य का आचरण किया हो, अणिच्छियव्वो - अनिच्छनीय की इच्छा की हो, असावगपाउग्गो - 'श्रावक धर्म के विरुद्ध कार्य किया हो, णाणे तह दसणे - ज्ञान तथा दर्शन में, चरित्ताचरित्ते - श्रावक के देशव्रत में, सुए - श्रुत में, सामाइए - सामायिक में, तिण्हं - तीन, गुत्तीणं - गुप्तियों की, चउण्हं - चार, कसायाणं - कषायों की, पंचण्हं - पांच, अणुव्वयांणं - अणुव्रतों की, गुणव्वयाणं - गुणव्रतों की, सिक्खावयाणं - शिक्षा व्रतों की, बारस्स-विहस्स - बारह प्रकार के, सावग-धम्मस्स-- श्रावक धर्म की, जं - जो, खंडियं - खण्डना की हो, विराहियं - विराधना की हो, तस्स - उसका, मिच्छा - मिथ्या, मि - मेरे लिए, दुक्कडं - पाप।
® हरिभद्रीयावश्यक पृष्ठ ७७८ में "ठाइउं" पाठ है । , "इच्छामि ठामि काउस्सग्गं" के स्थान पर चौथे आवश्यक में "इच्छामि पडिक्कमिउं" शब्द बोलना चाहिए।
© जहां जहां भी देवसिओ शब्द आवे उसके स्थान पर रात्रिक प्रतिक्रमण में "राइओ", पाक्षिक प्रतिक्रमण में "देवसिओ पक्खिओ", चातुर्मासिक प्रतिक्रमण में "चाउम्मासिओ" और सांवत्सरिक प्रतिक्रमण में "संवच्छरिओ" पाठ बोलना चाहिये ।
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