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आवश्यक सूत्र - द्वितीय अध्ययन
समाहिवरमुत्तमं - सर्वोत्कृष्ट समाधि को। समाधि का सामान्य अर्थ है - चित्त की एकाग्रता। यह समाधि मनुष्य का अभ्युदय करती है, अंतरात्मा को पवित्र बनाती है एवं सुख, दुःख तथा हर्ष, शोक आदि के प्रसंगों में शांत तथा स्थिर रखती है। सर्वोत्कृष्ट समाधि दशा पर पहुंचने पर आत्मा का पतन नहीं होता। ____चंदेसु णिम्मलय। - चन्द्रों से निर्मल। तीर्थंकर चन्द्रों से भी अधिक निर्मल है क्योंकि चन्द्रमा में तो कुछ कलंक दिखता है परंतु तीर्थंकर भगवान् ने चार घाती रूप कर्म कलंक का नाश कर दिया है अतः वे चन्द्रमा से भी अधिक निर्मल कहे गये हैं। अर्हन्त प्रभु अपने निर्मल ज्ञान से सभी में निर्मल आत्मिक शांति प्रदान करते हैं। उनकी वाणी विषय कषाय रूपी संताप का हरण कर एकांत शांति - शीतलता प्रदान करती है। ___ आइच्चेसु अहियं पयासयरा - सूर्यों से भी अधिक प्रकाश करने वाले। तीर्थंकर, सूर्यों से भी अधिक प्रकाश करने वाले है क्योंकि सूर्य सीमित क्षेत्र को प्रकाशित करता है परंतु तीर्थंकर भगवान् केवलज्ञान रूप प्रदीप से संपूर्ण क्षेत्र-लोक को प्रकाशित करते हैं अतः तीर्थकर सूर्यों से भी अधिक प्रकाश करने वाले हैं।
सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु - सिद्ध भगवान् मुझे सिद्धि प्रदान करें।
शंका - सिद्ध भगवान् तो वीतराग है, कृतकृत्य है, किसी को कुछ देते-लेते नहीं फिर उनसे इस प्रकार की याचना क्यों की गई है?
समाधान - प्रभु वीतरागी हैं वे किसी पर राग और द्वेष नहीं करते परंतु प्रभु चरणों में प्रार्थना करना भक्त का कर्तव्य है, ऐसा करने से अहंकार का नाश होता है, हृदय में श्रद्धा का बल जागृत होता है और भगवान् के प्रति अपूर्व सम्मान प्रदर्शित होता है।
सिद्ध, मुझे सिद्धि प्रदान करें - यह लाक्षणिक भाषा है। इसका यहां आशय है कि - सिद्ध भगवान् के आलंबन से मुझे सिद्धि प्राप्त हो। जैसे चिंतामणी रत्न से वांछित फल की प्राप्ति होती है वैसे ही सिद्धों का ध्यान करने से, गुण स्मरण करने से चित्त शुद्धि द्वार अभिलषित फल की प्राप्ति होती है।
॥ चतुर्विंशतिस्तव नामक दूसरा अध्ययन समाप्त॥
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