________________
वंदना - द्वादशावर्त गुरु-वंदन सूत्र
४७
मे देवसिओ अइयारो कओ, तस्स खमासमणो! पडिक्कमामि, निंदामि, गरिहामि, अप्पाणं वोसिरामि।
कठिन शब्दार्थ - खमासमणो - हे क्षमाश्रमण!, वंदिउं - वंदना करना, जावणिज्जाएशक्ति के अनुसार, निसीहियाए - पाप क्रिया से निवृत्त हुए शरीर से, अणुजाणह - आज्ञा दीजिये, मे - मुझ को, मिउग्गहं - परिमित भूमि में प्रवेश करने की, निसीहि - पाप क्रिया को रोक कर, अहो कायं - आपके चरणों का, काय संफासं - मस्तक और हाथ से स्पर्श करता हूँ, खमणिज्जो - क्षमा के योग्य है, भे - आपको, किलामो - किलामना बाधा, अप्पकिलंताणं - ग्लानि वाले, बहुसुभेणं - बहुत सुख पूर्वक, दिवसो - दिन, वइक्कंतोबीता, जत्ता - संयम यात्रा, जवणिजं - मन तथा इन्द्रियाँ पीड़ा रहित है, खामेमि - खमाता हूँ, वइक्कम - अपराध को, आवस्सियाए - आवश्यक क्रिया में हुए विपरीत अनुष्ठान से, पडिक्कमामि - निवृत्त होता हूँ, प्रतिक्रमण करता हूँ, तित्तीसन्नयराए - तेतीस में से किसी भी, आसायणाए - आशातना के द्वारा, जं किंचि - जिस किसी भी, मिच्छाए - मिथ्याभाव से की हुई, मणदुक्कडाए - दुष्ट मन से, वयदुक्कडाए - दुष्ट वचन से की हुई, कायदुक्कडाए - शरीर की कुचेष्ठाओं से की हुई, कोहाए - क्रोध से, माणाएं - मान से, मायाए - माया से, लोहाए - लोभ से की हुई, सव्वकालियाए - सर्वकाल में की हुई, सव्व मिच्छोवयाराए - सर्व मिथ्या आचरणों से पूर्ण, सव्वधम्माइक्कमणाए - सब धर्मों का उल्लंघन करने वाली।
भावार्थ - हे क्षमाश्रमण गुरुदेव! मैं शरीर को पाप क्रिया से निवृत्त कर यथा शक्ति आपको वंदना करना चाहता हूँ। अतः मुझ को अवग्रह-परिमित भूमि में प्रवेश करने की आज्ञा दीजिये। मैं पापक्रिया से हट कर अपने मस्तक तथा दोनों हाथों से आपके चरणों को स्पर्श करता हूँ। मेरे चरण-स्पर्श करने से आपको जो कुछ भी बाधा हुई हो, उसके लिए मुझे क्षमा कीजिए। ग्लानि रहित आपका यह दिन बहुत आनंद से बीता? आपकी संयम-यात्रा निर्बाध है? आपका शरीर मन तथा इन्द्रियाँ पीड़ा रहित स्वस्थ है? हे क्षमाश्रमण! मुझ से दिन भर में जो भी अपराध हुआ हो उसके लिए मैं क्षमा याचना करता हूँ। आवश्यक क्रिया करते समय जो भी विपरीत आचरण हुआ हो, उसका मैं प्रतिक्रमण करता हूँ। हे क्षमा श्रमण! जिस
"देवसिओ अइयारो" के स्थान पर रात्रिक प्रतिक्रमण में "राइओ अइयारो", पाक्षिक प्रतिक्रमण में "देवसिओ पक्खिओ अइयारो", चातुर्मासिक प्रतिक्रमण में "चाउम्मासिओ.अइयारो", सांवत्सरिक प्रतिक्रमण में "संवच्छरिओ अइयारो" पाठ बोलना चाहिये ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org