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कारण होती है । जो पर्याय पर सापेक्ष होती हैं उसे विभाव पर्याय कहते है विभाव पर्यायें केवल जीव और पुद्गल द्रव्य में होतो हैं क्योंकि ये दोनो द्रव्य परस्पर में (निमित्त नमित्तिक संबंध होने पर) मिलकर विभाव रूप परिणमन कर जाते हैं ।
पर्याय के दूसरी प्रकार से अर्थ पर्याय और व्यञ्जन पर्यांय ये भी दो भेद है । अर्थ पर्याय तो छह द्रव्यों में होती है वह सूक्ष्म है वचन अगोचर है, और क्षण क्षण उत्पन्न और नष्ट होती हैं । व्यञ्जन पर्याय स्थूल होती हैं वचनोंके द्वारा उसका कथन किया जा सकता है वह नश्वर होकर भी कुछ काल तक रहने से स्थिर होती हैं । उसके स्वभाव विभाव तथा द्रव्य पर्याय गुण पर्याय रूप भेद होते हैं । संसारी जीव की नर नारकादि पर्याय विभाव द्रव्य व्यंजन पर्याय और मतिज्ञान आदि विभाव गुण व्यंजन पर्याय तथा स्कन्धके स्पर्शादि गुणोंका परिणमन विभाव गुणव्यंजन पर्याय हैं । इन सब पर्यायोंसे युक्त द्रव्य होता है । द्रव्यार्थिक नयसे द्रव्यका उत्पाद और विनाश नहीं है सद्भाव है उसी की पर्याये उत्पाद विनाश और ध्रुवता धारण करती है ।' पर्यायार्थिक नयसेही द्रव्य उत्पादवाला या विनाशवाला हैं इसी उत्पाद विनाश को पर्याय कहते है । वस्तुरुपसे द्रव्य और पर्यायोंका अभेद हैं क्योंकि पर्यायोंसे रहित द्रव्य और द्रव्यसे रहित पर्यायें नही होती है इस प्रकार दोनोंमें अनन्य भाव है । जल की लहरोंकी तरह द्रव्यमें प्रतिसमय अपनी अपनी अनादि अनन्त पर्यायें उत्पन्न होती और नष्ट होती है । इसलिये पर्यायें नियत क्रमवर्तीही होती है ।
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१. पंचास्तिकायगाथा ११ २. पंचास्तिकाय गाथा १२ ३ आलाप पद्धति गाथा १
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