Book Title: Aalappaddhati
Author(s): Devsen Acharya, Bhuvnendrakumar Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 124
________________ गुण व्युत्पत्ति अधिकार ( ८१ ) धर्मद्रव्य अधर्मद्रव्य तथा प्रत्येक जीव द्रव्य लोकाकाश प्रमाण असंख्यात प्रदेशी उपचारनयसे माने गये हैं । तथा आकाश द्रव्य को अनंत प्रदेशी कहा हैं । वास्तवमें आकाश द्रव्य अखंड एक द्रव्य है परंतु आकाश द्रव्यके जितने भागमें जीवादि छहों द्रव्य रहते है उसको लोकाकाश उपचार नयसे कहा है । वास्तव में संस्थान आकार धर्म पुद्गल द्रव्यका स्वभाव है । परंतु लोकाकाश प्रमाण एक महास्कंध जितने असंख्यात प्रदेशी हैं उसको लोकाकाश मानकर लोकाकाशके असंख्यात प्रदेश प्रमाण धर्म-अधर्मं प्रत्येक जीव प्रदेशोंकी अपेक्षा समान असंख्यात प्रदेश मानें है । वास्तवम पुद्गल परमाणु एक प्रदेशी है । परन्तु दो आदि संख्यात परमाणुओंके स्कंघको असंख्यात प्रदेशी, असंख्यात परमाणुओके स्कंधको असंख्यात प्रदेशी, तथा अनंत परमाणुओंके स्कंधको अनंत प्रदेशी कहा हैं । वह सब उपचारनय हैं एयपदेसो वि अणू णाणाखंघ- प्पदेस दोहोदि । बहुदेसो उवयारा तेण य कायो भणति सव्वण्हु || परमाणू एकप्रदेशी होकर भी प्रत्येक परमाणुको प्रदेश उपचारसे मानकर उसको उपचारनयसे बहुप्रदेशी अस्तिकाय माना है । उसी प्रकार वास्तव में 'अण्णदवियेण अण्णदवियस्स णकीरए गुणुप्पाओ तथापि उपचार नयसे-धर्म द्रव्य जीव और पुद्गलको स्वयं अपनी क्रियावती शक्तिसे गमनशील होकर भी धर्मद्रव्य के अस्तित्वमें गमन करता है इसलिये उपचारसे धर्मद्रव्यको 'गमण सहयारी' कहा है । अधर्मद्रव्यको स्थिति सहकारी कहा है । आकाश द्रव्यको अवकाश सहकारी कहा है। तथा कालद्रव्यको वर्तना हेतू माना गया है । वास्तवमें कालद्रव्य अपनी वर्तना अपना परिणमन करता हैं परंतु उस कालके मानसे अन्यद्रव्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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