Book Title: Aalappaddhati
Author(s): Devsen Acharya, Bhuvnendrakumar Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

View full book text
Previous | Next

Page 144
________________ नय योजना अधिकार ( १०१ ) जाता है । इसलिये अन्वय द्रव्यार्थिक नय दृष्टिसे अन्वयरुप एक द्रव्य अनेक स्वभावरुप प्रतीत होता है । सद्भूत व्यवहारेण गुण-गुण्यदिभिः भेदस्वभावः ॥ १५६ ॥ सद्भूत व्यवहार नय की अपेक्षा से गुण-गुणी, पर्यायपर्यायवान् आदि अभेदवस्तुमें संज्ञा - लक्षण - प्रयोजन आदि अपेक्षासे भेदग्रहण करना यह सद्भूत व्यवहार नय है । भेदकल्पना निरपेक्षेण गुण - गुण्यादिभिः अभेदस्वभावः ॥ १५७ ॥ भेदकल्पना निरपेक्ष शुद्ध द्रव्यार्थिक नयसे गुण - गुणी आदिमें वस्तुभेद न होने के कारण अभेद स्वभाव हैं । गुण-गुणी आदि कल्पना अभेद द्रव्यमें भेद विवक्षा लेकर ही की जाती हैं । यदि भेद कल्पना गौण अविवक्षित कर जाती हैं तो द्रव्य अभेद स्वभाव प्रतीत होता है | - परमभाव ग्राहकेण भव्य - अभव्य पारिणामिक स्वभावः ॥ १५८ ।। परम पारिणामिक भाव ग्राहक शुद्ध नयसे प्रत्येक वस्तुभव्य - अभव्य - पारिणामिकस्वभाव सदा प्रतीत होती हैं। जो नय वस्तुके शुद्ध - अशुद्ध उपचार रहित स्वतः सिद्ध द्रव्यके स्वभाव को ग्रहण करता हैं वह पारिणामिक ग्राहक द्रव्यार्थिक नय है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168