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नय योजना अधिकार
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जाता है । इसलिये अन्वय द्रव्यार्थिक नय दृष्टिसे अन्वयरुप एक द्रव्य अनेक स्वभावरुप प्रतीत होता है ।
सद्भूत व्यवहारेण गुण-गुण्यदिभिः भेदस्वभावः ॥ १५६ ॥
सद्भूत व्यवहार नय की अपेक्षा से गुण-गुणी, पर्यायपर्यायवान् आदि अभेदवस्तुमें संज्ञा - लक्षण - प्रयोजन आदि अपेक्षासे भेदग्रहण करना यह सद्भूत व्यवहार नय है ।
भेदकल्पना निरपेक्षेण गुण - गुण्यादिभिः अभेदस्वभावः ॥ १५७ ॥
भेदकल्पना निरपेक्ष शुद्ध द्रव्यार्थिक नयसे गुण - गुणी आदिमें वस्तुभेद न होने के कारण अभेद स्वभाव हैं ।
गुण-गुणी आदि कल्पना अभेद द्रव्यमें भेद विवक्षा लेकर ही की जाती हैं । यदि भेद कल्पना गौण अविवक्षित कर जाती हैं तो द्रव्य अभेद स्वभाव प्रतीत होता है |
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परमभाव ग्राहकेण भव्य - अभव्य पारिणामिक स्वभावः ॥ १५८ ।।
परम पारिणामिक भाव ग्राहक शुद्ध नयसे प्रत्येक वस्तुभव्य - अभव्य - पारिणामिकस्वभाव सदा प्रतीत होती हैं। जो नय वस्तुके शुद्ध - अशुद्ध उपचार रहित स्वतः सिद्ध द्रव्यके स्वभाव को ग्रहण करता हैं वह पारिणामिक ग्राहक द्रव्यार्थिक नय है
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