SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 143
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १०० ) आलाप पद्धती केनचित् पर्यायार्थिकनयेन अनित्य स्वभावः ।। १५३ ।। किसीभी पर्यायार्थिक नयकी विवक्षासे द्रव्य प्रतिसमय पूर्वोत्तर पर्यायरूपसे उत्पाद - व्ययरूपसे परिणमन स्वभाव है । भेदकल्पना निरपेक्षेण एकस्वभावः 11 १५४ ।। (देखो सूत्र ५३|१८७ ) वस्तुके गुणभेद - पर्याय भेद की विवक्षा गौण अविवक्षित कर अभेद विवक्षा की प्रधानतासे द्रव्य सदा एक स्वभाव हैं अभेदनय विवक्षासे णविणाणं ण चरितं ण दंसणं जाणगो सुद्धो आत्मामे न केवल ज्ञान हैं, न केवल दर्शन हैं, ( समयसार ७ ) न केवल चारित्र है किंतु ज्ञान-दर्शन- चारित्र भेद जिसमें अंतर्भूत है - गौण अविवक्षित है ऐसी अभेद विवक्षासे आत्मा एक शुद्ध ज्ञायक स्वभाव हैं । अन्वय द्रव्यार्थिकेन एकस्य अपि अनेक द्रव्य स्वभावत्वं ॥ १५५ ॥ अन्वय द्रव्यार्थिक नयसे, अन्वयरुप एक द्रव्यमें भी एक द्रव्यान्वय रखनेवाले अनेक स्वभाव पाये जाते हैं ॥ विशेषार्थ - जिसके होनेपर जो होता है वह अन्वय है । जैसे एक द्रव्यके अनेक गुण तथा उसके अनेक पर्यायोंमें, 'यह वही हैं, यह वही है ऐसा एक द्रव्यका अन्वय संपूर्ण पर्यायोंमें पाया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001365
Book TitleAalappaddhati
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorBhuvnendrakumar Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1989
Total Pages168
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Nyay
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy