Book Title: Aalappaddhati
Author(s): Devsen Acharya, Bhuvnendrakumar Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 154
________________ निक्षेप व्युत्पत्ति ( १११) अथ निक्षेप व्युत्पत्तिः ॥ १४ ॥ प्रमाण नययोनिक्षेपणं-आरोपणं निक्षेपः। स नामस्थापनादि भेदेन चतुविधः ॥ १८३ ॥ प्रमाण और नय के निक्षेपण को निक्षेप कहते हैं वह नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव के भेद से चार प्रकार का है। विशेषार्थ- निक्षेप का अर्थ है रखना। अर्थात् प्रयोजनवश नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव में पदार्थ के स्थापन करने को निक्षेप कहते हैं । गुण-जाति आदिकी अपेक्षा न करके विवक्षित नाम से संकेतित करना नाम निक्षेप है । जैसे-किसी दरिद्र ने अपने बेटे का नाम राजकुमार रखा हैं तो वह नाम से राजकुमार है। साकार और निराकार पदार्थ में वह यह हैं इस प्रकार की स्थापना करना स्थापना निक्षेप हैं । जैसे शतरंज के मोहरों में राजा आदि की स्थापना करना । नय भेदो की व्युत्पत्ति ॥ १५ ॥ द्रव्यमेवार्थः प्रयोजनमस्येति द्रव्याथिकः ।। १८४ ।। द्रव्य ही जिसका अर्थ अर्थात् प्रयोजन हैं वह द्रव्याथिक नय है ॥ १८ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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