Book Title: Aalappaddhati
Author(s): Devsen Acharya, Bhuvnendrakumar Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 147
________________ ( १०४) आलाप पद्धति टीप- (समानशील व्यसनेषुसख्यं) अचेतन कर्मके साथ संबंध रखनेके लिये चेतनको कथंचित् अचेतन होना पडता हैं। परमभाव ग्राहकेण कर्मनोकर्मणो मूर्त स्वभावः ॥ १६३ ॥ परमभाव ग्राहक नयकी अपेक्षासे कर्म नोकर्म मूर्त स्वभाव है। (क्योंकि वे अपने परम भाव मूर्त द्रव्य पुद्गलके होनेसे परम भावसे मूर्त हैं) जीवस्यापि असद्भूत व्यवहारेग मूर्त स्वभावः॥१६४ ।। असद्भूत व्यवहार नयसे जीव भी मूर्त स्वभाव है। परमभाव ग्राहकेण पुद्गलं विहाय इतरेषाममूर्त स्वभावः ॥ १६५ ॥ परमभाव ग्राहक नय की अपेक्षा पुद्गल को छोडकर धर्म, अधर्म, आकाश और काल ये द्रव्य अमूर्त स्वभाव है ।। पुद्गलस्योपचारादपि नास्त्यमूर्तत्वम् ॥ १६६ ॥ (किन्तु) पुद्गल उपचारसे भी अमूर्त स्वभाववाला नहीं है। परमभाव ग्राहकेण कालपुद्गलाणूनामेकप्रदेशस्वभावत्वम् ॥ १६७ ॥ परम भाव ग्राहक नय की अपेक्षासे कालाणु तथा पुद्गल का एक परमाणु एक प्रदेशी है ॥ १६७ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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