Book Title: Aalappaddhati
Author(s): Devsen Acharya, Bhuvnendrakumar Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 145
________________ ( १०२) मालाप पद्धती वस्तु का पारिणामिक भाव सदा अपने स्वचतुष्टयरुपसे भव्य (भवितंयोग्यः) सदा होने योग्य परिणमने योग्य तथा पर चतुष्टयरुपसे अभव्य-न होने योग्य-न परिणमने योग्य प्रकार ये भव्यअभव्य निसर्गसिद्ध परिणामिक भाव सब द्रव्योंमें पाया जाता है। शद्ध-अशुद्ध परम भाव ग्राहकेण चेतनस्वभावो जीवस्य ।। १५९ ।। जीव द्रव्यमें भव्यत्व मुक्त होने योग्य, अभव्यमुक्त न होने योग्य, इस प्रकार दो प्रकार जीव राशि निसर्गत्तः सुनिश्चित होती है इसलिये इनको पारिणामिक भाव कहा है। तथा शुद्ध और अशुद्ध परमभाव ग्राहक नयसे जीव की भव्य राशि-अभव्य राशि स्वत: सिद्ध पारिणामिक स्वरुप सुनिश्चित सिद्ध है । भव्य जीव कदापि अभव्य होता नही तथा अभव्य जीव कदापि भव्य होता नही । इसलिये मोक्षशास्र में जीवत्व जैसा सबजीव द्रव्योंमें रहनेवाला पारिणामिभाव स्वतःसिद्ध है। उसी प्रकार भव्य-अभव्य जीव राशि भी सुनिश्चित स्वतःसिद्ध होनेके कारण जीव भव्य-अभव्यत्वानि च' इस सूत्रके द्वारा पारिणामिक भावके तीन भेद कहे गये है। भव्यजीवोमें जीवत्व और भव्यत्व ये दो पारिणामिक भाव तथा अभावजीवों जीवत्व और अभव्यत्व ये दो पारिणामिक भाव रहते है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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