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नय योजना अधिकार
(९९) स्वद्रव्यादि ग्राहकेण अस्ति स्वभावः ॥ १५० ॥
स्वद्रव्य-स्वक्षेत्र-स्वकाल-स्वभाव रुप स्वचतुष्टय की अपेक्षा प्रत्येक द्रव्य सदासर्वकाल अस्तिस्वभाव हैं। नाऽसतो विद्यते भावः, नाभावो विद्यते सताम् । असत् का कदापि उत्पादसंभव नहीं, तथा सत्का कदापि नाश संभव नहीं । वस्तु सदा स्वचतुष्टयसे सतरुप रहती हैं। (सूत्र ५४ तथा १८८ में इसका विवरण आया है)
परद्रव्यादि ग्राहकेण नास्तिस्वभावः ॥ १५१ ॥
परद्रव्य-परक्षेत्र-परकाल-परभाव की अपेक्षा वस्तु सदा सर्वदा नास्ति स्वभाव हैं । अर्थात् वस्तुमें परद्रव्यादि पर चतुष्टय की सर्वदा नास्ति हैं। एक द्रव्य दूसरे द्रव्यका जो उपकार अपकार सहकार माना जाता है वह सब असद्भूत व्यवहार नयका उपचार किया जाता है । (आलाप पद्धति सूत्र पप तथा १८९
देखो)
उत्पाद-व्यय गौणत्वेन सत्ताग्राहकेण नित्यस्वभावः ॥१५२॥
वस्तूके उत्पाद-व्यय धर्मोको गौणकर ध्रुवसत् की प्रधानताकी विवक्षासे वस्तु सदा ध्रुव-नित्य है । द्रव्यरुपसे अपरिणमनशील है, द्रव्य का द्रव्यांतर परिणमन कदापि होता नही।
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