________________
व्यवहार है अन्यत्र प्रसिद्ध धर्म में आरोप करनेको असद्भूत व्यवहार कहते है । असद्भूत ही उपचार हैं । इस प्रकार इन्ही के अन्तर्गत उपचरित असद्भूत व्यवहार नय, सद्भूत व्यवहार नय का अर्थ करके द्रव्य मे द्रव्यका उपचार आदि असद्भूत व्यवहार नय के नौ प्रकार प्ररूपित किये है ।
उपचार कोई अन्य नय नही होनेसे उसे अलग से नही कहा गया है। मुख्यका अभाव होने पर और प्रयोजन तथा निमित्तके होने पर उपचार किया जाता हैं । यह अविनामाव संबंध आदि को लेकर होता है इस तरह उपचरित असद्भूत व्यवहार का अर्थ सत्यार्थ, असत्यार्थ, और सत्यासत्यार्थ होता हैं।
१६) अध्यात्म नयों का स्वरूप
जहां मुख्यरूप से आत्मस्वरूपका प्रतिपादन किया जाता हैं व अध्यात्म कहलाता है । इस प्रकरण में आत्मस्वरूप के प्रतिपादन में प्रत्युक्त होनेवाले नयों का निरूपण है । अध्यात्म भाषाके मूल नय निश्चय और व्यवहार ये दो ही हैं । उनमें निश्चय अभेद को विषय करता हैं और व्यवहार भेद को विषय करता है।
निश्चयके दो भेद है- शुद्ध निश्चय और अशुद्ध निश्चय । उनमे से गुण गुणी में उपाधि रहित अभेद को विषय करनेवाला शुद्ध निश्चय और उपाधि सहित अभेद को विषय करनेवाला
(२८)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org