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द्रव्यका लक्षण
गुणपर्ययवद् द्रव्यम् ॥ २७ ॥ गुण तथा पर्याय इनके समूहको द्रव्य कहते है । पहले द्रव्यका लक्षण — सत् द्रव्य लक्षणम् ' उस प्रकार सत् द्रव्यलक्षण कहकर उस सत्का उत्पादव्यय ध्रौव्य युक्तं सत् ' उत्पाद-व्यय ध्रौव्यसे युक्त उसको सत् कहा है । यहां गुण पर्याय समूहको द्रव्य कहा है । दोनों लक्षणोंमे शब्दभेद है । अर्थभेद नही है।
द्रव्य सदा गुणरूपसे ध्रुव द्रव्यस्वभावरूप रहता है , अपरिणमन शील है तथा पर्यायरूपसे उत्पाद-व्ययरूप प्रतिसमय परिणमनशील है। द्रव्यको अनेकान्तत्मक, सामान्य-विशेष धर्मात्मक इस प्रकार परस्पर विरुद्ध धर्मको द्वय अविरोध सिद्ध करना यह अनेकान्त जैन शासनके अनेकान्तका मुख्य प्रयोजन है । द्रव्यको सामान्य विशेषात्मक, द्रव्य-गुण-पर्यायात्मक उत्पाद-व्यय-ध्रौ यात्मक, सत्-असदात्मक, एक अनेकात्मक, नित्य-अनित्यात्मक, भेद-अभेदात्मक. तत्-अतदात्मक इस प्रकार परस्पर विरोधी उभय धर्मात्मक अनेकान्तात्मक कहा है । अर्थात द्रव्य द्रव्याथिकनयसे, सामान्यस्वरूप, गुणविशेषस्वरूप, ध्रुव सत्रूप, एकरूप, अभेदस्वरूप तत्स्वरूप, नित्य ध्रुवस्वरूप है । तथा पर्यायाथिकनयसे पर्यायविशेषस्वरूप, उत्पाद-व्ययस्वरूप, असत्रूप ( क्षणिकसत्रूप ) अनेकरूप, भेदस्वरूप, अतत्स्वरूप, अनिन्य- अध्रुवरूप प्रतिसमय परिणमनशील है ।
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