Book Title: Aalappaddhati
Author(s): Devsen Acharya, Bhuvnendrakumar Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 110
________________ गुण व्युत्पत्ति अधिकार ( ६७ ) सद्द्द्रव्यलक्षणम्, ॥ सीदति स्वकीयान् गुणपर्यायान् व्याप्नोति इति सत् उत्पादव्ययध्यौव्य युक्तं सत् ॥ ९७ ॥ द्रव्यका लक्षण सत् है । अपने गुण- पर्यायोंप्रत जो व्यापता है, सदा विद्यमान रहता है वह सत् है । प्रमेयस्य भावः प्रमेयत्वं प्रमाणेन स्व- पररूपं परिच्छेद्यं प्रमेयम् ।। ९८ ॥ 1 प्रमेयका भाव वह प्रमेयत्व है । प्रमाणके द्वारा स्व-पर व्यवसायरूप जो ज्ञान वह प्रमाण ज्ञान का विषय वह प्रमेयत्व गुण है । यद्यपि वस्तुमें वर्तमान कालमें पर्याय रुपसे एक वर्तमान पर्यायही प्रगट दीखती हैं, तथापि वस्तु ( भूत- वर्तमान भविष्यत् पर्यायाण अविभ्राड्भावसंबंधो द्रव्यं) भूत-भविष्य - वर्तमान संपूर्ण त्रिकालवर्ती पर्यायोंके अविभ्राड् अभिन्न- अखंड एक समुदाय का नाम द्रव्य है । इस वस्तु सिद्धांत के कारण वस्तुके वर्तमान पर्याय में शेष भूत-भविष्यत् सब पर्यायें सत्रुपसे - गुणरूप से सदा सर्व काल विद्यमान रहती हैं इसलिये केवल ज्ञान में वस्तुके वर्तमान पर्याय के माध्यम से वस्तुमें शक्तिरुपसे रहनेवाली तथा अपने अपनें स्वकाल में नियतक्रमबद्ध रुपसे प्रगट होनेवाली सब पर्यायें युगपत् प्रतिभासित होती हैं । शंका- ( धवल पु. १ पृष्ठ २२ ) जो जाना जाता हैं उसे प्रमेय कहते हैं । वस्तुमें वर्तमान पर्यायका ज्ञान होता हैं इसलिये वर्तमान पर्याय ही प्रमेय होगी । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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