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आलाप पद्धती
(७३)
साथ संश्लेषरुप जो परिणमन वह विभाव परिणमन है । तथा अन्य द्रव्यके संसर्ग रहित जो स्वभाविक परिणमन होता है वह स्वभाव परिणमन है।
जो द्रव्यका तथा द्रव्यके प्रत्येक गुणका 'परि' अर्थात् समंतात् समस्तरुपसे अयनं' परिणमन होता हैं उसको पर्याय कहते हैं । पर्यायके स्वभाव-विभाव भेद हैं । तथा अर्थपर्याय और व्यंजन पर्याय रुपसे दो भेद है।
इन प्रत्येक के स्वभाव-विभाव भेदसे दो दो भेद हैं। १ स्वभाव अर्थ पर्याय, २ विभाव अर्थ पर्याय गुणोंके विकारको अर्थ पर्याय अथवा गुण पर्याय कहते है १ स्वभाव व्यंजन पर्याय, २ विभव व्यंजन पर्याय.
गुणोंके समूह रुप द्रव्यके प्रदेशत्व गुणके विकारका आकारका परिणमन होता हैं वह व्यंजन पर्याय अथवा द्रव्य पर्याय है।
॥ इति पर्याय व्युत्पत्ति अधिकार ॥
९ स्वभाव व्युत्पत्ति अधिकार स्वभावलाभात् अच्युतत्वात् अस्तिस्वभावः ॥१०६।।
जिस द्रव्यका जो अपना स्वत: सिद्ध स्वभाव प्राप्त हैं उससे कदापि च्युत न होना सदा सत् स्वरुप रहना इसीका नाम अस्तित्व स्वभाव हैं।
सब द्रव्य अपने स्वद्रव्य-स्वक्षेत्र-स्वकाल-स्वभाव चतुष्टयसे
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