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( २६ )
आलाप पद्धति
द्रव्यके मूल स्वतः सिद्ध स्वरूपको स्वभाव कहते है। तत्काल पर्याय युक्त अथवा वर्तमान पर्याययुक्त वस्तुको भाव कहते है।
प्रश्न- पहले गुणाधिकार का वर्णन किया है। अब यहां फिरसे स्वभाव अधिकार का वर्णन किया जा रहा है। इसमें क्या रहस्य है ?
उत्तर- जो गुण है वे गुणी में ही रहते है । परन्तु स्वभाव गुणमें भी रहता है और गुणी में भी रहता है।
प्रश्न- गुण गुणीमें किस प्रकार रहते है ?
उत्तर- गुण गुणीका अभेद तादात्म्यसंबंध है। प्रत्येक गुण गणीके सब भागोमें सब प्रदेशोंमे तथा त्रिकालवर्ती सब अवस्थाओंमें व्याप कर रहता है।
प्रश्न- स्वभाव गुण और गुणीमें किस प्रकार रहता है ?
उत्तर- गुण और गुणी अपनें अपने गुणपर्यायरूप तथा द्रव्य पर्यायरूप परिणमन यही गुणोंका तथा द्रव्योंका स्वभाव है।
इस प्रकार गुण और स्वभावमें कथंचित् विशेषता है। इसलिये यह स्वभाव अधिकार पृथक् कहा गया है। १) अस्ति स्वभाव- द्रव्य अपने स्वचतुष्टयसे सदा
अस्ति स्वभाव है। २) नास्ति स्वभाव- द्रव्य परद्रव्य चतुष्टयकी अपेक्षा
सदा नास्ति है। ३ ) नित्य स्वभाव- द्रव्य ध्रुवरूपसे सदा नित्य स्वभाव है। ४ ) अनित्य स्वभाव- द्रव्य उत्पाद व्ययरूपसे प्रतिसमय
परिणमन शील अनित्य स्वभाव है।
आप
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