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नय अधिकार
व्यंजन पर्याया पेक्षया प्रारंभतः प्रारभ्य अबसानं यावत् भवतीति निश्चयः कर्तव्यः ॥
शब्दसमभिरूढएवंभूताः नयाः प्रत्येक एकैकाः नया:॥ ७६ ।।
शब्द समभिरूढ एवंभूत ये नय प्रत्येक एक एक प्रकारके है। ये तीन नय शब्दनय ( व्यंजन नय ) कहे जाते है। इनमें शब्दकी प्रधानता रहती है ॥ शब्द नेदसे अर्थ भेद मानते है। .
शब्दनयो-यथा-दाराः, भार्या, कलत्रं । जलं आपः ॥ ७७ ॥
जो नय शब्दध्याकरणा शास्त्र नियमके अनुसार विभक्ति प्रत्यय लगाकर व्युत्पन्न होता है उसको शब्द कहते है। शब्द विवक्षा प्रधानता लेकर जो प्रयोग किया जाता है उसे शब्दनय कहते है। शब्दके प्रयोगमे लिंग, संख्या साधन, काल, कारक पुरुष, उपग्रह आदिके जो व्यभिचार दोष आता है उसको दूर करता है।
जैसे दाराः यह पुलिंगमे है, भार्या यह शब्द स्त्रीलिंगमे है। कलत्रं यह शब्द नपुंसलिंगमे है। व्यवहारमे यद्यपि इन तीनो भिन्नलिंगी शब्दोंका एकार्थं स्त्रीवाचक होता है तथापि शब्दशास्त्र व्याकरण शास्त्रके अनुसार शब्दभेदके कारण अर्थभेद होनेसे उनका एकार्थ मानना व्यभिचार है। उसका निषेध कर भिन्न भिन्न शब्दोंका भिन्न भिन्न अर्थ मानना यह शब्दनयका विषय हैं ,
उसी प्रकार जलं यह नपुंसकलिंगमे एक वचनपद है ।
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