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१०) एकान्त पक्ष दोष
इस अधिकारमें वस्तु को सर्वथा एकान्त मानने से क्या क्या दोष पैदा होते है इसका दिग्दर्शन कराया गया है। वस्तु में अनेक रुपता होती हैं और दुर्नयके विषय भूत एकान्त रूप (एक रूपतावाला) पदार्थ वास्तविक नही है क्योंकि दुर्नय केवल स्वार्थिक वे अन्य नयोंकी उपेक्षा करके केवल अपनी ही पुष्टि करते हैं । इसके साथ जो स्वार्थिक होनेसे विपरीत होते है वे नय नियमसे सदोष होते है। इसी आधार को लेकर ग्रन्थकार एकान्त सद्प या एकान्त असद्रूप आदि मानने वालोंमें क्या क्या कठिनाईयां उत्पन्न होगी इन्हीका स्पष्टीकरण करते हुए कहते है कि यदि वस्तुको सर्वथा एकान्तसे सत्रूप माना जावेगा तो सब पदार्थोके सत्रूप होनेसे संकर आदि दोषोकी उत्पत्ति होगी और उससे नियत अर्थ व्यवस्था नहीं बन सकेगी । अर्थात् जब जब वस्तुको सद्रूप माना जावेगा तो वस्तु सर्वरूप प्रकारसे सत् ही होगी ऐसी स्थिति में जीव पुद्गल और पुद्गल जीव हो जावेगी क्योंकि सद्रूपता में पृथक् पृथक् की कोई व्यवस्था है ही नहीं।
इसी प्रकार वस्तुको सर्वथा असत् रूप-अभाव रूप मानने से समस्त संसार की शून्यता का प्रसग आवेगा । वस्तु को सर्वथा नित्य माननेमेंभी वस्तु सदा एक रूप रहेगी और एक रूप वस्तुके रहने से परिणमनके अभावमें अर्थक्रिया नही बन सकेगी। वस्तु को सर्वथा अनित्य (क्षणमंगुर) मानने में दूसरे क्षण वस्तुका सर्वथा विनाश हो जानेसे वह कुछकार्य नही कर सकेगी।
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