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__ स्वभाव- "स्वस्य भावः स्वभावः" 'स्व' अर्थात् द्रव्यका जो भाव है वह स्वभाव हैं, अथवा "स्वे (द्रव्ये) भावः स्वभावः अर्थात् द्रव्यमें होनेवाला जो भाव है वह स्वभाव है । गुणों द्वारा द्रव्य को पहिचान होती हैं और स्वभाव के द्वारा द्रव्यमे रहनेवाले भावो का ज्ञान होता है- यही गुण और भावमे अन्तर है । स्वभाव भी गुणोकी तरह सामान्य और विशेषसे दो प्रकारके होते हैं।
अस्तिस्वभाव, नास्तिस्वभाव, नित्य स्वभाव, अनित्य स्वभाव, एक स्वभाव, अनेक स्वभाव, भेद स्वभाव, अभेद स्वभाव, भव्य स्वभाव, अभव्य स्वभाव, और परमस्वभाव ये दश सामान्य स्वभाव है क्योंकि सामान्यरूपसे ये सभी द्रव्योंमें पाये जाते हैं। चेतन स्वभाव, अचेतन स्वभाव मूर्तस्वभाव, अमूर्त स्वभाव, एक प्रदेश स्वभाव, विभाव स्वभाव, शुद्ध स्वभाव, अशुद्ध स्वभाव और उपचारित स्वभाव ये द्रव्योंके विशेष स्वभाव है। इनमे कुछ स्वभाव ऐसे है जो विपरीत या परनिमित्तादि की अपेक्षा कहे गये है जैसे विभाव स्वभाव हैं वह स्वभावसे विरुद्ध होनेसे विपरीत होता है और प्रयोजनवश परके निमित्त होने पर उपचरित स्वभाव हैं. ये स्वभाव द्रव्य गत है यदिद्रव्यगत न हो तो वैसा वस्तुका परिणमन हो नहीं सकता है विभाव स्वभाव होनेसे जीवका ज्ञान अज्ञान रूप परिणमन कर जाता है । इन ग्यारह सामान्य स्वभावों तथादश विशेष स्वभावोंमे जीव और पुद्गलमें पूरे पूरे होनेसे इक्कीस इक्कीस स्वभाव होते हैं। चेतन स्वभाव, मूर्त स्वभाव विभाव स्वभाव, एक प्रदेश स्वभाव अशुद्ध स्वभाव इनके विनाशेष सोलह स्वभाव धर्म अधर्म आकाश और काल द्रव्य में होते है बहुप्रदेशीको छोडकर काल द्रव्यमे पंद्रह स्वभाव होते है
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