Book Title: Aagam 42 Dashvaikalik Choorni
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 248
________________ आगम (४२) “दशवैकालिक - मूलसूत्र-३ (नियुक्ति:+|भाष्य +चूर्णि:) अध्ययनं [७], उद्देशक [-], मूलं [१५...] / गाथा: [२७८-३३४/२९४-३५०], नियुक्ति: [२७१-२९३/२६९-२९२], भाष्यं [६२...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र - [४२], मूलसूत्र - [०३] "दशवैकालिक नियुक्ति: एवं जिनदासगणि-रचिता चूर्णि: प्रत सूत्रांक [१५...] गाथा ||२७८ गुण ३३४|| श्रीदश-18 वकण आयारसुद्धी भवति , बकसुद्धीए इमा णिरुत्तगाथा भवइ, 'जं वकं बदमाणस्स.१॥२९०॥ जे वकं वयमाणस साधुणो वकालिक संजमे सुद्धी भवइ, णय सच्चेण भणिएण हिंसा जायइ, ण य अत्तणो कलुसमावो भवइ, जहा कि मए एतं एवंविहं मणियं विभक्तः फलं तेण बकसुद्धी भण्णाह, किं कारणं बकसुद्धीए एत्तिओ आयरो कीरह, आयरिओ आह-'वषणविभत्तीकुसलस्स.' ।। २९१ ।। ॥२४॥ माथा, वयणविभचीए कुसलया जस्स अस्थि सो वयणविभचाकुसलो, तस्स बयणविभतीकुसलस्स, न केवलं पयणविभत्तीकुसलस्सेब, किंतु 'संजमंमि उपठितमतिस्स' तत्थ सम्म नाम संजमो, तमि संजमे उवट्टिया मती जस्स, उचट्ठिया नाम थिरी| भवा, जम्हा तस्स ययणविमतीकुसलस्स संजमंमि य उपट्टितमइस्स साहुणों एकेणावि दुम्भासिएण बिराधणा होज्जा, अओ12 |वद्यासुद्धीए सब्वपयतेण जसितमति, आह-जह भासमाणस्स दोसो तो मोणं कायव्य, आयरिओ भण: मोणमवि अणुवाएणx कुबमाणस्स दोसो भवइ, कह', 'वयणविभत्ति अकुसलो० ॥ २९२ ॥ गाथा, कोयि वयणविभची अकुसलो सो वओगतं बहुविध-अणे गप्पगारं अयाणमाणी जद दिवसं पहन किंचि भासइ 'तहाधिन बयिगुत्तयं पत्तो'त्ति, जो भासागुणदोसविहिण्णू तस्स इमो गुणो भवइ, तंजहा- 'वयणविभत्तीकुसला ॥२९३ ॥ गाथा, जो कोइ वयण विभत्तीकुसलो वओगतं पहुविध अणेगप्पगार जाणमाणा-जह दिवसमणुबद्धं भासह तहावि वयगुत्तत् पत्तोत्ति । इयाणि सुचाणुगमे मुचमुच्चारयव्य। अक्खलियं अमिलियं जहा अणुयोगद्दारे, तं च सुत्नं इम-'चउण्हं खलु भासाणं, परिसंवाय पन्नवं । (दो) दुण्हं तु विणय २४२॥ | सिक्ख, दाम भासिज्ज सव्वसो (२३८)सिलोगो, चतुर, प्रातिपदिका, षष्ठी शेपे' विभक्तिर्मवति शेषे कारक, तस्या बहुवचनंद आम्, पष्ठी चतुर्थी बेसिनुर आगमः परगमनं चतुण, भाषाणां चतुणों, खलनिपातः परकीयमर्थमयोते, (मारूयाति) खलुसदो CCCC दीप अनुक्रम [२९४३५०] ® अत्र सप्तमं अध्ययनस्य सूत्र (गाथा:) आरभ्यते [247]

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