Book Title: Aagam 42 Dashvaikalik Choorni
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
________________
आगम (४२)
“दशवैकालिक - मूलसूत्र-३ (नियुक्ति:+|भाष्य+चूर्णि:) अध्ययनं [९], उद्देशक [१], मूलं [१५...] / गाथा: [३९९-४१५/४१५-४३१], नियुक्ति: [३११-३२९/३०९-३२७], भाष्यं [६२...]
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र - [४२], मूलसूत्र - [०३] “दशवैकालिक नियुक्ति: एवं जिनदासगणि-रचिता चूर्णि:
प्रत
सूत्रांक [१५...]
गाथा ||३९९४१५||
विनयाध्य.
श्रीदश
पुण अप्पसमा अबोधिकरा, आसायणा दोसायहा मोक्खाभावकरा य काऊण 'तम्हा अणावाहसुहाभिकखी गुरुप्पसायाभि-21 उद्देशकः वैकालिक
मुहो रमिज्ज' चि तत्थ अणाचाहो मोक्खो भण्णइ, 'जहादिअग्गी॥४०९॥ तं, जहा आहियअग्गी भणो णाणाविहेण चूर्णी
| धयादिणा मंतं उच्चारेऊण आहुई दलया, पर्य खीर भण्णइ, तेण अभिमुद्दो सित्तो अभिसित्तो, जहा तं पयसि सो आहितग्गी| उवयरइ, एवं आयरियमवि वेयावच्चविणयमाईहिं अणतनाणातिगमातिसयजुत्तोऽवि उवचिद्वेज्जा, किमंग पुण सेसोति,13
अणतनाणाइगओ नाम अणतं जेण नजदणाणेण तं अणतनाणं तं उबगओ तो सो अणतणाणावगओ भण्णा, उबगओ णाम ॥३०६॥जातीसे णाणलद्धीए उववेयोति, उबचिट्ठज्जा णाम सुस्सेज्जारी। किंच--'जस्संतिए.' ।। ४१० ॥ चं, जस्संतियं आयरियस्स
वा सगासे धम्मियाणि सिक्खेज्जा तस्स सगासे घेणइयं पउंजेज्ज' ति, तत्थ विणयस्स भावो वेणइयं, पउजेज्जा नाम पउंजेज्जत्ति वा कुम्बिज्जत्ति पा एगट्ठा, तं च वेणइयं इम-सकारए नए सिरसा पंजलीग्गहणेण पंचगियस्स बंदणस्स गहणं कयं, तमायरियं पुव्वभणिएण अम्भुट्टाणाणा विणएण सकारए, इमेण पंचगीएण बंदणिएण, तंजहा--जाणुदुर्ग भूमीए निवडिएण हत्थदुरण भूमीए अवटुंभिय ततो सिरं पंचमं निवाएज्जा, तेण अब्भुट्टाणाइणा इमेण य सिरपंचमेण कारण गिराए बंदणनिमिचं आसमाणो, भो इति सीसामंतणं, मणसा तदुवउत्तेण, णिच्चं णाम सब्वकालं, ते गुरवो पूयणिज्जा, तंजहा-'लज्जा दया.' ॥४१शावृत्तं तत्थ लज्जा अववादभयं, दया अणुकंपा, संजमो सचरसविधो. बंभचर मेहणविरई.'एगग्गहणे गहणं तज्जातियाण'
॥३०६॥ मितिकाऊणं सेसाण मूलगुणउत्तरगुणाण गहणं, 'कल्लाणभागिस्स विसोहिठाणं' ति कल्लार्ण-मोक्खी भन्मद, तस्स आभागी जो जीवो तस्स इमाणि लज्जाईणि पावाण कम्माण विसोधिहाणति, जे मे गुरु--आयरिया सततं-सव्वकाल लज्जादीणि,
दीप अनुक्रम [४१५४३१]
[311]
Page Navigation
1 ... 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387