Book Title: Aagam 42 Dashvaikalik Choorni
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम (४२)
“दशवैकालिक"- मूलसूत्र-३ (नियुक्ति:+भाष्य +चूर्णि:) अध्ययनं [९], उद्देशक [२], मूलं [१५...] / गाथा: [४१६-४३८/४३२-४५५], नियुक्ति: [३२९.../३२७.., भाष्यं [६२...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र - [४२], मूलसूत्र - [०३] "दशवैकालिक नियुक्ति: एवं जिनदासगणि-रचिता चूर्णि:
प्रत
सूत्रांक [१५...] गाथा ॥४१६४३८||
श्रीदश-15 परिताबो सुदारुणो भवाहानि. अहवा परितावो निटरचायणज्जियस्स जो मणि संताचो सो परितायो भण्णह, ते च परितावं २ उद्देशक: चकालिक सुदारुणं 'निअच्छति' नाम निग्गच्छति वा पार्वति वा एगट्ठा, जुत्ता नाम तमि सिक्खियब्वे निजुज्जतित्ति, ललिईदिया णाम | चूणों आगम्भाओ ललियाणि इंदियाणि जर्सि ते ललिइदिया, अञ्चन्तसुहितत्ति चुतं भवति, ते य रायपुत्तादि, किंच,
तेऽवि तंगुरू' .॥ ४३० ।। सिलोगे, तेऽबि ताव सच्छंदलालिया रायपुत्तादि तमुवरोहपहारादि विस हति, तमायरियं च | विनयाध्य.
है। पूजयंति 'तस्स सिप्पस्स कारणा, ते य प्याइया तं 'सकारेंति नमसति तुट्टा निदेसवत्तिणो' अहवा पूया महुरवयणा॥३१४॥ भिनदणी भन्नइ सक्कारी भाजणाच्छादणादिसंपादणओ भवइ, णमंसणा अन्भुहाणजलिपग्गहादी, तुहा णाम पराक्खमान णमोक्कारादीहि णमंसंति, '
निदेसवत्तिणो णाम जमाणवेति तं सब कुवंतीति णिसवत्तिणो, जति तावेवं लोइया सुहलि|च्छाए कारणाए कुब्बति । किं पुण जे सुअग्गाही'. ॥ ४३१॥ सिलेोगे, किमिति एसो पुच्छाए चट्टद, पुणसहो Piविसेसणे, किं विसेसयति?, जहा गाहयति भगवंतो साधवो सीसाण उबट्ठावणादीण कुव्वंतित्ति एवं विसेसयति, सुज दुवालसंग
गणिपिडगं, सुतं गाइयंतीति सुयम्गाही, अणंतं हितं कामयतीति अणतहितकामए, मोक्खसुहकामएत्तिवृत्तं भवति, जम्हा ते इह| लोगे परलोगे हितं सुर्य गाहयंति तम्हा ते आयरिया बदेज्जा ते भिक्ख नाहवत्तए'णाम णातिकमेज्जति । इदाणि विणीवाआ भण्णइ-'नीय सिज्जं गई ठाण' ॥ ४५२॥ सिलोगो, सेज्जा संधारओ भण्णाइसो आयरिवरसतियाा णीयतरी।
P३१४॥ कायन्यो, तदा णीया गति कायव्या, 'णीया' नाम आयरियाण पिढओ गतब्ध, तमविणो अच्चासण्ण, नवा अतिदूरत्येण गंतव्य, *अच्चास ताव पादरेणुण आयरियसंघट्टणदोसो भवइ, अइदरे पडिणीयासायणादि बहवे दोसा भवतात, असा पच्चासणे।
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दीप अनुक्रम
9-25
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[४३२
४५५]
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