Book Title: Aagam 42 Dashvaikalik Choorni
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 328
________________ आगम (४२) “दशवैकालिक"- मूलसूत्र-३ (नियुक्ति:+भाष्य +चूर्णि:) अध्ययनं [९], उद्देशक [३], मूलं [१५...] / गाथा: [४३९-४५३/४५६-४७०], नियुक्ति: [३२९.../३२७.., भाष्यं [६२...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र - [४२], मूलसूत्र - [०३] “दशवैकालिक नियुक्ति: एवं जिनदासगणि-रचिता चूर्णि: प्रत सूत्रांक [१५...] गाथा ||४३९४५३|| । ॐॐ ACCIDENT श्रीन- चादि कुइंग मण्णद, तं न करेइ अङ्गहएनि, अन्जवसंपपणो अमाई भण्णाह, सहा आपसुणे यादि 'अपिसुणे'णाम नो मनोपीति- 18/२ उद्देशकः वैकालिका भेदकारए, अदीण वित्ती नाम आहारोवहिमाइसु अलब्ममाणेसु णो दीणभावं गच्छइ, तेसु लद्धसुवि अदीणभावो भवइत्ति पूणा 'अदाणवित्ती नो भावए' नाम नो अन्न एवं पएज्जा, जहा तुम मए अन्नउत्थियाण गिहत्थाण य पुरी ठविज्जासे, जहा। अहो तवस्सी विजातिसयपत्तो नेभित्तिओ एवमादि य,सयमवि अप्पणो नो एवं वएजा जहा धम्मी समओ नाणी वा मित्तिओ वा विनयाध्य. विजासिद्धो वा असुगकालगो वा एवमादि, तहा नडनहगादिसुणो कूउहल करेइ. जो एयगुणजुत्तो साहु सो सदा पूणिज्जो भवइ ।। किंच-'गुणेहि साधू०४४६॥ वृत्त, जे एते विणयगुणा भणिया जो एतेहिं गुणेहिं जुत्तो सो साधू भवइ, तबिबरीएहिं अगुणेहिं असाधु भवइतिणाऊण साहणं जे गुणा ते गेण्हाहि, मुंचहि असाहअगुणे गधलाघवत्यमकारलो काऊण एवं पढिाइ जहा मुंबडसाधुत्ति. विविध-अणेगप्पगारं अप्पगं कम्मुणा अहविषेण बज्झमाण अप्पणो विजाणिय जो रागदोसेहि समो से पूणिज्जो भवति|त्ति । आह-वियाणिया अप्पगंति भाणियब्बे सह किमत्थं अप्पगणति भण्णात ?, आयरिओ आह-केसिंचि उलूगादीण पाणस्स जाणिणोऽविहु अभावो, तप्पडिसहणथं अपकहणति, किंच-'तहेब इहरं च महल्लगे वा०॥४५०॥ वृत्तं, 'तहेब' चि जहा अवष्णवायादी ण कप्पंति आयरिउं तहा इदमवि, एक्सद्दो पायपूरणे, डहरो-बालो भण्णइ, 'महल्लो' थेरो भण्णइ, चकारगहणेण मझिमवओऽवि गहिओ, एतेसि एक्केको इत्थी पुरिसो वा होज्जा, 'एगग्गहणे गहण तज्जातीयाण' मितिकाउ ३२२॥ नपुंसगोऽवि गहिओ, तत्थ इत्थी गिहत्था वा होज्जा पब्वइगा वा, एवं पुरिसोऽवि, नपुंसगोऽवि, सो ण कप्पद पवावंडं, जाहे अणाभोगादिणा कारेणण पवाविओहोज्जा ताहे सबप्पगारेण विगिचणिज्जो, अहवा सोऽवि चरगादिपब्बज्जाए पचइओ होज्जा, ॥३२२॥ दीप अनुक्रम [४५६४७० C+ ACCE9ी [327]

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