Book Title: Aagam 42 Dashvaikalik Choorni
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 332
________________ आगम “दशवैकालिक - मूलसूत्र-३ (नियुक्ति:+|भाष्य +चूर्णि:) (४२) । अध्ययनं [१], उद्देशक [४], मूलं [१-१/४७१-४८४] / गाथा: [४५४-४६०/४७१-४८४], नियुक्ति : [३२९.../३२७...], भाष्यं [६२...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र - [४२], मूलसूत्र - [०३] “दशवैकालिक नियुक्ति: एवं जिनदासगणि-रचिता चूर्णि: प्रत सूत्रांक वैकालिका [१-५] गाथा ||४५४ श्रीदश- चूर्णी. विनयाध्ययने AAA-GE ४६०|| पुण ते अमिरामयंति ?, एत्थ भण्णइ--'जे भवंति जिईदिय 'ति, जेत्ति अणिदिड्डाण गहणं कयंति, एतेसु चउसु ठाणसु ते ४ उद्देशकः अप्पाणं अभिरामयंति जे य जिइंदिआ भवंति, न पुण अजितिदियत्ति, विणयमूलो एस जिणप्पणीओ धम्मोत्तिकाऊण अगे पुलि विणयसमाही माणिया, तमि विणए अवास्थओ सुतं गेण्हइत्ति, अतो विणय (समाहीए परओ) सुयसमादी भणिया, तमि य सुए तवो वाणिज्जातचि अओ तवसमाही भणिया, तवो य आयारादुवस्थियस्स सुद्धो भवइत्ति अतो आयारस्स समाधी भाणया । इदाणि एतेसि एककं चउन्विहं भण्णइ, तत्थ ' पउचिहा खलु विणयसमाही भवइत्ति (सूत्रं १७)'चउम्विहा ' नाम चउब्विहति वा चउभेदत्ति वा एगट्ठा, खलुसहो पायपूरणे, विणओ चेव समाधी विणयसमाधी, अहवा विणयसमाधी भवति । णाम हवहात्ति वा एगट्ठा, साय चउबिहावि इमा, तंजहा अणुसासिज्जतो सुस्वसइ, पढमं विणयसमाधीए पदं, सम्म संपडिवज्जतित्ति बितियं पदं, वेयमाराहइत्ति ततियं पयं भवति, जय भवद अत्तसंपग्गहिए, चउत्थं पदं भवति, तत्थ अणुसासिज्जंतो | सुस्सूसइ णाम अणुसासणा पडिचोदणा भण्णइ, पडिचोइज्जतो ममेव हितमुबइसतित्ति सुस्मुसइ, 'सुस्सूसइ' नाम तदेव | ll |पडिचोवणं पुणो पुणो सोउमिच्छति,' संमं संपड़िवज्जई' नाम तं पाडिचोदणं तत्तओ पाडिबज्जा, 'वेयमाराहद' नाम वेदो-नाणं भण्णइ, तत्थ जं जहा माणितं तहेव फुच्चमाणो तमायरइत्ति, न य भवइ अत्तसंपग्गहिए 'नाम नो अत्तुकारसं करेइत्ति, जहा विणीयो जानकारी य एवमादि, मुत्तकमपरिवाडीए चउस्थमेयं पदं भयह । भवह य एष विणय ॥३२६॥ समाहीए सिलोगो, तंजहा पेहेइ हिआणुसासणं, सुस्सूसई तं च पुणो अहिडए । न य माणमएण मज्जई, विणप-10 समाही आययहिए ॥ ४५५।। 'पहेई' नाम पेहतिान्ति वा पेच्छतित्ति वा एगहा, 'हिआणुसासणं' नाम जे इहलोगहिये ॥३२६॥ दीप अनुक्रम [४७१४८४] - - [331]

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